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भारत में होली के विभिन्न रिवाज, क्या आप जानते हैं?
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भारत में होली के विभिन्न रिवाज, क्या आप जानते हैं?
👉🏻किसान भाइयों आप सभी को रंगों के त्यौहार होली की ढेर सारी शुभकामनायें। आपके जीवन में होली के रंगो के जैसी रंग-बिरंगी खुशियां हमेशा बनी रहें। आज इस लेख में हम जानेंगे कि देश के विभिन्न हिस्सों में होली कैसे मनाते हैं। ब्रज की विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली:- 👉🏻लट्ठमार होली खेलने की परंपरा भगवान कृष्ण और राधा रानी के समय से चली आ रही है। इसे देश-विदेश से लोग देखने भी आते हैं। होली के मौके पर भगवान कृष्ण नंदगांव से राधा रानी से मिलने के लिए बरसाने जाते हैं और उनके साथ सखा ग्वाले भी होते हैं। बरसाने पहुंचकर कृष्ण राधा रानी और सखियों के साथ होली खेलते हैं। लेकिन कान्हा और उनके ग्वालों के पीछे भागती हैं और छड़ी मारती हैं। तभी से लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। आज भी बरसाने और नंदगांव में इसी परंपरा को निभाया जाता है। बरसाने में नंदगांव की टोलियां पिचकारियों को लेकर पहुंचते हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएं खूब लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। इसके लिए वह लाठी और ढालों का सहारा लेते हैं। अगले दिन नंदगांव में भी यही आयोजन किया जाता है। पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है। पसंदीदा जयपुर का गुलाल गोटा:- 👉🏻होली के दिनों में गुलाबी नगरी जयपुर का खास और पसंदीदा खेल है गुलाल गोटा। यह कभी जयपुर के राजा रजवाड़ों और राज परिवारों की शान हुआ करता था। अब यह विदेशी पर्यटकों की भी पहली पसंद बना हुआ है। गुलाल गोटा लाख से बनी एक नाजुक गेंद की भांति है जिसका वजन करीब 3 ग्राम होता है। लाख को गर्म कर फूंकनी की मदद से फुलाकर उसमें गुलाल भरी जाती है। लाख की परत इतनी नरम और हल्की होती है कि किसी पर फेंकने से वह टूट जाती है और सामने वाला गुलाल से सराबोर हो जाता है।यह गुलाल गोटे रंग-बिरंगे रगों में बेहद आकर्षक लगते हैं. इनके साथ होली खेलने वाले न सिर्फ रंगों से बल्कि खुशबू से भी नहा जाता है। विसनगर में धुलेती पर्व पर खसड़ा युद्ध की परंपरा:- 👉🏻विसनगर में, धुलेती की पूर्व संध्या पर, एक पारंपरिक खासडा युद्ध मनाया जाता है जिसमें सभी जातियों के लोग एक साथ मिलते हैं और खजूर से भरा जग पाने के लिए एक दूसरे के सामने खासडा फेंककर जश्न मनाते हैं। विसनगर का मंडी बाजार क्षेत्र धुलेती की पूर्व संध्या पर 200 से अधिक वर्षों से पारंपरिक खसड़ा युद्ध का जश्न मना रहा है। ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति को खासडा लगता हे उनका पूरा साल अच्छा होता है। अब खासडा की जगह कांदा,आलू, टमाटर और बेंगन जैसी सब्जी ने ले ली है। इंदौर की प्रसिद्ध रंगपंचमी (गेर) का जुलूस:- 👉🏻मध्य प्रदेश के इस उत्सवधर्मी शहर में गेर की परंपरा रियासत काल में शुरू हुई, जब होलकर राजवंश के लोग रंगपंचमी पर आम जनता के साथ होली खेलने के लिए सड़कों पर निकलते है। तब गेर में बैलगाड़ियों का बड़ा काफिला होता है जिन पर टेसू के फूलों और अन्य हर्बल वस्तुओं से तैयार रंगों की कड़ाही रखी होती है. यह रंग गेर में शामिल होने वाले लोगों पर बड़ी-बड़ी पिचकारियों से बरसाया जाता है। स्रोत:- Agrostar, 👉🏻किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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