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भारत के फॉरेस्ट मैन की कहानी: वन्यजीव दिवस विशेष!
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भारत के फॉरेस्ट मैन की कहानी: वन्यजीव दिवस विशेष!
क्यों मनाया जाता है विश्व वन्यजीव दिवस:- 👉🏻हर साल पूरी दुनिया में 3 मार्च को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्‍य दुनियाभर में तेजी से विलुप्त हो रही वनस्पतियों और जीव जन्तुओं की प्रजातियों की सुरक्षा के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करना है.भारत में इस समय 900 से भी ज्यादा दुर्लभ प्रजातियां खतरे में बताई जा रही हैं. यही नहीं, विश्व धरोहर को गंवाने वाले देशों की लिस्ट में दुनियाभर में भारत का चीन के बाद 7वां स्थान है। विश्व वन्यजीव दिवस का इतिहास:- 👉🏻जानवरों और पेड़-पौधों की खराब दुर्दशा को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 2013 के 20 दिसंबर को 68वें सत्र में 03 मार्च के दिन को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ के रूप में अपनाए जाने की घोषणा की थी. 3 मार्च को विलुप्तप्राय वन्यजीव और वनस्पति के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को स्वीकृत किया गया था. वन्य जीवों को विलुप्त होने से रोकने के लिए पहली बार साल 1872 में जंगली हाथी संरक्षण अधिनियम (वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट) पारित हुआ था. तब से लेकर आज तक हर साल 3 मार्च को पूरी दुनिया में वन्‍य जीव को संरक्षित करने और इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्‍य से इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है। 👉🏻ये तो बात थी वन्यजीव दिवस की इसके साथ ही आज हम जानेंगे इसी से सम्बंधित एक बहुत ही एक महान व्यक्ति के अथक प्रयास के बारे में जिन्हे लोग फॉरेस्ट मैन के नाम से भी जानते हैं... 👉🏻भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो साधारण होते हुए भी ऐसे असाधारण काम कर जाते हैं, जिन्हें करने के लिए बहुत सारी खूबियों की जरूरत होती है। ऐसे ही एक असम के जादव मलय पायेंग हैं। जादव ने अपनी जिंदगी के शुरुआती 30 साल पर्यावरण के दे दिए और आज उन्होंने अपने दम पर एक जंगल तक उगा दिया, जिसका नाम मलय जंगल है। 👉🏻ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसाया गया यह जंगल अब बंगाल टाइगर्स, भारतीय गेंडों, सौ से ज्यादा हिरणों, खरगोशों, बंदरों और विभिन्न किस्म के पक्षियों का आवास बना हुआ है। यह जंगल अब राज्य के 800 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। जादव की 30 सालों की मेहनत का परिणाम है कि आज यहां करीब सौ हाथियों का एक झुंड प्रतिवर्ष आता है और वे यहां करीब छह महीनों तक रहते हैं। 👉🏻राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से पदमश्री पा चुके जादव से सवाल करने पर वह कहते हैं कि मेरे दोस्त इंजीनियर्स बन गए हैं और बड़े शहरों में रह रहे हैं। मैंने सब कुछ त्याग दिया है और अब यह जंगल ही मेरा घर है। जो सम्मान, पुरस्कार मुझे मिले, वे ही मेरी दौलत हैं और वे मुझे दुनिया का सबसे सुखी इंसान बनाते हैं। जादव आज भी एक टिन शेड घर में रहते हैं और गाय का दूध बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं। अच्छी हिंदी न आने के बाद भी उन्हें शीर्ष अंतरराष्ट्रीय मंचों से जंगल संरक्षण के बारे में बात करने के लिए नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता है। स्रोत:- Agrostar, 👉🏻किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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