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पपीते में मिलीबग का एकीकृत प्रबंधन
गुरु ज्ञानएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
पपीते में मिलीबग का एकीकृत प्रबंधन
पपीते में मिलीबग का प्रसार सबसे पहले 2008 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुआ था। केरल, कर्नाटक, त्रिपुरा और महाराष्ट्र में धीरे-धीरे यह फैलता गया। यह पपीते की पत्तियों, तना और फलों के रस को चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। यदि इनका संक्रमण अधिक हो तो पपीते के पेड़ से पत्ते झड़ जाते हैं और पपीता खाने लायक नहीं रहता है। इससे पपीते के फल को लगभग 60 से 70 प्रतिशत का नुकसान होता है।
एकीकृत प्रबंधन: • समय-समय पर पपीते के बागीचे का सर्वेक्षण करें। • क्षतिग्रस्त पत्तियों और फलों को इकट्ठा करके उन्हें नष्ट कर दें। • बगीचे में नियमित रूप से साफ-सफाई और स्वच्छता रखें। • मिट्टी की कुड़ाई के बाद उसे धूप लगाने दें। • बगीचे की समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें और खरपतवार को निकाल दें। • मिलीबग के नियंत्रण के लिए परभक्षी कीट का उपयोग करें। • अनुशंसित कीटनाशकों का उचित उपयोग करें। • एसरफैगस पपया या एनाग्रेज लोईकी जैसे परभक्षी उपलब्ध हैं तो इनका उपयोग करें। डॉ. टी.एम. भरपोडा, एंटोमोलॉजी के पूर्व प्रोफेसर, बी ए कालेज ऑफ एग्रीकल्चर, आनंद कृषि विश्वविद्यालय, आनंद- 388 110 (गुजरात भारत) यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगे, तो फोटो के नीचे दिए पीले अंगूठे के निशान पर क्लिक करें और नीचे दिए विकल्पों के माध्यम से अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा करें।
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