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हम कृषि प्रधान देश में रहते हैं
सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
हम कृषि प्रधान देश में रहते हैं
हम बचपन से एक वाक्य अक्सर सुनते आए हैं कि ‘भारत एक कृषि प्रधान देश है।‘ हमारे देश में शायद छोटे से लेकर बड़ा हर इंसान यही मानता है लेकिन, यह कितना सच है इसका अनुभव मुझे हाल ही में यूरोप में हुआ। हाल ही में मेरे सह-कर्मियों की मदद से प्रशिक्षण के लिए मुझे यूरोप के नीदरलैंड जाने का मौका मिला। नीदरलैंड में पूरे एक सप्ताह में हमें कई चीजें देखने और सीखने को मिलीं। इस दौरान हमारा पूरा समय कृषि क्षेत्र के नवीनतम तकनीक का अध्ययन करने में व्यतीत हुआ। इस दौरान हम कई कृषि विशेषज्ञों, किसानों और कृषि श्रमिकों से मिले। वे लोग बड़े ही अनुशासित, शांतप्रिय और कर्मठ थे। इस दौरे के अंतिम चरण में हम नाश्ते के लिए एक पांच सितारा होटल में गए थे जहां नाश्ता करते समय हमने एक बोर्ड देखा जिस पर लिखा था- 'यह नाश्ता हमारे डच किसानों और उनके समूह का समर्थन करता है', इन शब्दों ने मेरे दिल को छुआ और मेरे दिमाग में कई सारे सवाल भी उठे। उस बोर्ड के चारों ओर फल, टमाटर, ककड़ी का सलाद, विदेशी पत्तेदार सब्जियों का सलाद, दूध के विभिन्न पदार्थ (जैसे मक्खन, दही, छाछ और घी) साथ ही अन्य फलों का रस, शहद आदि रखे गए थे। इस बोर्ड पर कुछ अन्य बातों का भी उल्लेख किया गया था। जैसे कि 'ये उत्पाद स्थानीय हैं, इनमें किसी भी तरह की अप्राकृतिक चीनी का इस्तेमाल नहीं किया गया है, यह सभी पैकिंग आसानी से नष्ट हो जाती हैं और यह पर्यावरण के अनुकूल हैं।' जिस खेत से यह सभी पदार्थ लाए गए और होटल के द्वारा भी एक वाक्य लिखा गया था, ‘काम की तलाश में बाहर गए और घर से दूर रहने वाले लोगों के लिए यह जगह परिपूर्ण है, इस जगह पर बहुत प्यार से स्वादिष्ट और गुणवत्तापूर्ण खाना बनाया जाता है।” बोर्ड के अंतिम पक्तियों में नई पीढ़ी के युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए लिखा गया था कि ‘स्वस्थ भोजन, किसान और कृषि इनका संबंध अटूट है और इसका हमेशा आदर करें।‘ हालांकि, लोगों को भले ही यह वाक्य छोटा लगे पर, यह विचार सामाज को जागरूक करने के लिए बहुत उच्च हैं। यह सब देखकर, मेरे मन में यह विचार आया कि हमारे देश में ग्राहक का न कोई अधिकार है, न ही खेती के उत्पादन में कोई न्याय है फिर क्या सच में हमारा देश कृषि प्रधान है? विचारों से परिपक्व हम भारतीय क्या अपने कार्यों में उतने ही परिपक्व हैं क्या? क्या हमारी खेती से उत्पादित होने वाले उपज वास्तव में स्वस्थ हैं? क्या हम विषमुक्त भोजन का उत्पादन करते हैं? उपभोक्ताओं को किसानों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का मूल्य है क्या? फुटपाथ या सब्जी बाजार में हम सब्जियों को खरीदते समय मोलभाव करते हैं लेकिन वातानुकूलित दुकानों में महंगे कपड़े, जूते और सौंदर्य प्रसाधनों को खरीदते समय फिजूल खर्च करते हैं? इन सभी परिप्रेक्ष्य में हम क्या समाज के बारे में सोचते हैं? इन सब को देखते हुए हमें अपने कार्यों में बदलाव लाना चाहिए या बस इस बात पर सहमत होना चाहिए कि भारत एक कृषि प्रधान देश है! यह कथन उन दोनों के लिए है, जो इस तथ्य को मानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और दूसरे उन लोगों के लिए जो कि ऐसा नहीं मानते हैं। दूसरे लोग जो यह नहीं मानते कि भारत एक कृषि प्रधान देश है उनको सच्चाई क्या है यह समझाने के लिए यह लेख समाज को योगदान देगा। स्रोत - तेजस कोल्हे, वरिष्ठ कृषिसलाहकार
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