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दुधारू पशुओं में थनैला रोग
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दुधारू पशुओं में थनैला रोग
थनैला रोग दुधारू पशुओं में सबसे अधिक और लगातार देखा जाने वाला रोग है। यह दूध की गुणवत्ता और दूध की उत्पादकता दोनों को प्रभावित करता है। अगर समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो थन स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं और जानवर अनुत्पादक बन जाते हैं।यदि इस बीमारी को नियंत्रित किया जाता है, तो हम इसके कारण चिकित्सा उपचार और वित्तीय हानि की लागत से बच सकते हैं। लक्षण: 1. थनों में सूजन। इसे छुने से दर्द होता है। 2. थनों में से पीले रंग के स्राव निकलता है और यह मक्खियों को आकर्षित करता है। 3. दूध बहुत पानी वाला या पीला होता है और दूध खराब हो जाता है। 4. अधिक गंभीर स्थिति में, पशुओं के पिछले पैर पर (थन के आसपास ) सूजन देखी जाती है। 5. पशु थक जाता है और शक्तिहीन हो जाता है। 6. शरीर का तापमान बढ़ता है और भोजन का सेवन कम हो जाता है।
निदान 1. यदि गर्मी में पशुओं के थन के पास मक्खियों को देखा जाता है। 2. कैलिफ़ोर्निया मेस्टाइटीस टेस्ट का उपयोग करके इस बीमारी का निदान किया जाता है। उपचार 1. पशु चिकित्सक की मदद से पशुओं का इलाज करें। 2. सबसे पहले, प्रभावित थन से खराब स्राव निकालें। उसके बाद थन में एंटीबायोटिक दवा का इंजेक्शन लगाएं। यह बैक्टीरिया के उपद्रव को कम करने में मदद करता है। रोकथाम और नियंत्रण 1. पशुओं का शेड साफ रखें। 2. ध्यान रखें कि पशुओंं के थन क्षतिग्रस्त न हों। 3. पशुओं को दूध दुहने से पहले, साफ पानी के साथ थन को सही ढंग से धो लें 4. दूध दुहने से पहले, हाथों को भी साफ करें। 5. पीड़ित थन से दूध को एक अलग बर्तन में बाहर निकालकर उसे फेंक दिया जाना चाहिए। 6. पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार, बाजार में उपलब्ध एंटीसेप्टिक दवा का उपयोग करें। दुहने के बाद हर बार, पशुओं के थन को टीट-डीप करें। संदर्भ- एग्रोवन 30 मई 2018
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