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तरबूज और खरबूज की खेती
गुरु ज्ञानएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
तरबूज और खरबूज की खेती
मिट्टी और मौसम: इन फसलों की सभी प्रकार की मिट्टी में खेती की जा सकती है। रेतीली चिकनी, दोमट , मध्यम से काली, जैविक मिट्टी तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त है। कैल्शियम युक्त, खारी, चिपचिपाई मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि कैल्शियम सल्फेट क्लोराइड, कार्बोनेट और बाय-कार्बोनेट जैसे घुलनशील लवणों के उच्च प्रतिशत का परिणामस्वरूप फलों पर धब्बे हो सकते है। 7 - 8 के पीएच वाली मिट्टी, उचित जल निकासी होनेवाली जमीन खेती के लिए उपयुक्त है। ये फसलें अम्लीय मिट्टी में भी टिक सकती हैं। इन फसलों को गर्म और शुष्क जलवायु और सूरज की रोशनी की बहुत आवश्यकता होती है। 24 डिग्री से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान बेलों की वृद्धि के लिए फायदेमंद होता है। यदि तापमान में परिवर्तन आता है, यानि अगर यह 18 डिग्री सेल्सियस से नीचे और 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो यह बेलों के विकास और फल धारणा को बुरी तरह से प्रभावित करता है। यदि तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से नीचे है तो बीज अंकुरित नहीं होते हैं। विकास के चरण के दौरान, अगर हवा में नमी और कोहरा हो, तो बेलें ठीक से नहीं बढ़ती हैं और कवक रोगों का संक्रमण होता है।। इन दिनों, गर्मियों और मानसून के दिनों को छोड़कर पूरे साल इन फसलों की खेती की जाती है।
बेहतर किस्में: तरबूज़ : शुगरबेबी, अर्का मानिक, असाही यामाटो, मधु, मिलन, अमृत, सुपर ड्रॅगन, ऑगस्टा, शुगर किंग, बादशाह आदि जैसी सुधारित किस्मों के अलावा कुछ निजी कंपनियों की कई किस्म भी बाजार में उपलब्ध हैं। इन किस्मों के अनुभव को ध्यान में रखते हुए उन्हें खेती के लिए चुना जाना चाहिए। सिंजेन्टा कंपनी की ‘शुगर क्वीन' किस्म महाराष्ट्र के किसानों में बहुत लोकप्रिय है। खरबूजा: पुसा शरबती, अर्का जीत, अर्का राजहंस, हरा मधु, दुर्गापुर मधु , पुसा मधुरस, पुसा असबाती, अर्का राजहंस, अर्का जेस्ट, पंजाब सुनहरी, पंजाब हाइब्रिड, लेनो सफ़ेद, अन्ना मालई, हरीभरी आदि विश्वविद्यालयों द्वारा सिफारिश की हैं और बॉबी, एन.एस., 910, दीप्ति, सोना, केशर जैसी निजी कंपनियों की किस्में भी अच्छी गुणवत्ता और उत्पादन अच्छा होने के कारण, किसानों द्वारा खेती के लिए चुनी जाती हैं। वर्तमान में ‘नो युअर सीड’ कंपनी की 'कुंदन' किस्म महाराष्ट्र में किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है। बीज: किसान आम तौर पर प्रति एकड़ में 1किग्रा तरबूज के बीज का उपयोग करते हैं। सुधारित खरबूज की किस्मों के 300 से 350 ग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त हैं। अगर संकर किस्म का उपयोग किया जाता है, तो प्रति एकड़ 100 से 150 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। सर्दियों के मौसम में अंकुरण कम होता है। विकास जल्दी नहीं होता है। इसलिए, अगर 250 ग्राम बीज 250 मिलीलीटर गर्म पानी में भिगोकर फिर सुखाकर 3 ग्राम थायरम बीज पर लगाया जाए, तो बीज 2 से 3 दिन पहले अंकुरित हो जाते हैं और अंकुरण स्वस्थ होता है। यहां तक कि पौधे मरते नहीं हैं। सामान्यतः बीज 6 से 8 दिन के बाद अंकुरित हो जाते हैं। खेती से पहले बीज उपचार आवश्यक है। खेती: बाजार की मांग को देखते हुए इन फसलों की खेती 15 दिसंबर और 15 फरवरी के बीच करनी चाहिए। फल ग्रीष्म ऋतु के दौरान अप्रैल-मई में बाजार में बिक्री के लिए तैयार होते हैं। इनकी अधिक मांग होती है। इसलिए अधिक बाजार मूल्य प्राप्त होता है। इनकी खेती दो तरीकों से की जाती है। पहला तरीका पौधे लगाकर और दूसरा सीधे ओरणी द्वारा ऊँची क्यारियों पर बुवाई की जाती है। ओरणी विधि में अंकुरण क्षमता कम रहती है। तो ऐसे स्थानों पर जहां बीज अंकुरित नहीं होते हैं, वहां बीज की फिर से ओरणी करने की आवश्यकता होती है। पौधों का विकास अलग-अलग समय पर होता है, इसलिए यह आगे की फ़सल व्यवस्था में बाधाएं पैदा करते है। इससे मज़दूरी लागत भी बढ़ जाती है। खेती की योजना के अनुसार, कोको पीट ट्रे में पौधे तैयार करें। पौधे 21 दिनों के अंदर तैयार हो जाते हैं। खेती से पहले, जमीन की आड़ी और खड़ी रूप से गहरी जुताई करनी चाहिए। 7 से 8 टन अच्छी तरह गोबर खाद या मुर्गी खाद प्रति एकड़ मिट्टी में डालना चाहिए। ऊंची क्यारियाँ तैयार करते समय प्रति एकड़ 10 किग्रा यूरिया, 10 किग्रा सुपर फॉस्फेट, 10 किग्रा पोटाश के साथ 200 किग्रा नीम केक, 4 किग्रा जिंक सल्फेट, 4 किग्रा मैग्नीशियम सल्फेट, 4 किग्रा फेरस सल्फेट को खेती से पहले ऊंची क्यारियाें में मिलाना चाहिए। उर्वरक खुराक मिलाने के बाद, ऊँची क्यारियों को एक समान बना दिया जाना चाहिए और बीच में ड्रिप सिंचाई की लेटरल स्थापित की जानी चाहिए और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पानी की आपूर्ति करके, लेटरल का निरीक्षण किया जाना चाहिए। उसके बाद ऊंची क्यारियों पर 25 से 30 माइक्रोन मोटाई और 4 फीट चौड़ाई के मल्चिंग पेपर फैलाएं। ऊंची क्यारियाँ की किनारों पर मिट्टी डालनी चाहिए, क्योंकि मल्चिंग पेपर हवा से उड़ ना जाए। मल्चिंग पेपर फैलाते समय ध्यान रखे कि यह क्यारियाँ के समानांतर और ताना हुआ है। अगर कागज ढीला हो जाता है, तो हवा के कारण फट सकता है। हमें प्रति एकड़ के लिए 4 से 5 किग्रा मल्चिंग पेपर की आवश्यकता हो सकती है। खेती के एक दिन पहले, 15 सेंटीमीटर की दूरी पर लेटरल के दोनों किनारों पर छेद करें। एक पंक्ति में दो छेद के बीच 2 फीट की दूरी रखें। छेद करने के बाद, ड्रिप सिंचाई सेट की मदद से ऊंची क्यारियों में पानी देना चाहिए। उसके बाद छेद में पौधाें का रोपण करें। यदि इस विधि द्वारा खेती की जाती है, तो प्रति एकड़ में लगभग 6000 पौधे लगाए जा सकते हैं। पोषक तत्वों की व्यवस्था: • खेती के 10-15 दिन बाद : 19:19:19 - 2.5-3 ग्राम, फसल पोषक तत्व - 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी • छिड़काव के 30 दिनों बाद : 20% बोरान - 1 ग्राम, फसल पोषक तत्व - 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी • पुष्पन चरण के दौरान : 00:52:34 - 4-5 ग्राम, फसल पोषक तत्व (ग्रेड नंबर 2) - 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी • फल धारणा : 00:52:34 - 4-5 ग्राम, बोरान - 1 ग्राम प्रति लीटर पानी • फलों का विकास चरण - 13:00:45 - 4-5 ग्राम, कैल्शियम नाइट्रेट - 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी इन फसलों को मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार रासायनिक उर्वरकों, सूक्ष्म पोषक तत्वों की खुराक दी जानी चाहिए। प्रति एकड़ 20 किलो नाइट्रोजन, 12 किग्रा पोटाश और 12 किलो फॉस्फोरस इस प्रमाण में रासायनिक उर्वरकों को दिया जाना चाहिए। 10 दिनों के बाद, 2 किलो प्रत्येक पीएसबी, एज़ोटोबैक्टर, ट्राइकोडर्मा दी जानी चाहिए। प्रारंभ में, उर्वरकों की मात्रा कम होनी चाहिए। जबकि उर्वरक गोबर खाद की पूरी खुराक, फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक और नाइट्रोजन की एक तिहाई खुराक को खेती के समय दी जानी चाहिए। बची हुइ नाइट्रोजन दो बराबर भागों में खेती के बाद एक और दो महीने में देना चाहिए। घुलनशील उर्वरकों की मात्रा फूलों की धारणा से लेकर फल परिपक्वता चरण तक धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए। उर्वरक देने से पहले ड्रिप सिंचाई का सेट एक घंटे के लिए शुरू कर देना चाहिए। ड्रिप सिंचाई के माध्यम से घुलनशील उर्वरकों को सिफारिशों के अनुसार दिया जाना चाहिए। जल की व्यवस्था : ये फसलें पानी के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। प्रारंभिक चरण में, इन फसलों के लिए पानी की आवश्यकता कम होती है। इसके बाद फसलों की वृद्धि के साथ, पानी की जरूरत भी बढ़ जाती है। फल धारणा की अवधि के बाद पानी का कोई तनाव नहीं हो, यह सुनिश्चित करें। जमीन में 65% नमी बनाए रखने के लिए और जमीन की गुणवत्ता और फसल के चरणों को ध्यान में रखते हुए ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पानी और उर्वरक का योजना बनाना चाहिए। यदि जरूरत से ज्यादा पानी दिया जाता है, तो रोगों की संभावना अधिक होती है। इसलिए पानी को टेक विधि द्वारा दिया जाना चाहिए। अगर भिगोने की विधि से पानी अधिक हो जाता है, तो जड़ सडन की संभावना होती है। प्लास्टिक कवर के कारण, फलों का संपर्क सीधे गीली जमीन से नहीं होता है। इसलिए फलों को नुकसान नहीं पहुंचता है। यदि फल एक ही स्थान पर रहे तो, जिस तरफ से मिट्टी के साथ संपर्क होता है उन जगहों पर फल में घाव हो जाते है। इसलिए जब फल बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें कटाई से कम से कम एक बार घुमाया जाना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार को समय-समय पर हाथ से निराई करके नियंत्रित किया जाना चाहिए। खरपतवार को नियंत्रित करने के साथ-साथ मल्चिंग से मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। यह फसलों के विकास के लिए मदद करता है। फ़सल संरक्षण: इन फसलों में लीफ माइनर, फल मख्खी, माहू, लाल घुन आदि जैसी कीट से संक्रमित होते हैं। इसके अलावा इन फसलों पर म्लानि रोग, रोमिल फफूंद, चिपचिपा स्टेम ब्लाईट और ब्लाईट आदि जैसी बीमारियां पाइ जाती हैं। रोगों से सुरक्षा के लिए, बुवाई से पहले थायरम या कॅप्टन जैसे कवकनाशी या ट्राइकोडर्मा जैव रोग नियंत्रक @5 ग्रा. /बीज के प्रमाण मे बीजोपचार किया जाना चाहिए। फसलों को समय-समय पर देखा जाना चाहिए और एकीकृत कीट रोग नियंत्रण और रोग व्यवस्था द्वारा कीट रोगों का नियंत्रण करना चाहिए। अतिरिक्त देखभाल: यह सुनिश्चित करें कि, फल धारणा होने के बाद, वे पानी के संपर्क में नहीं आते हैं अगर फल पानी के संपर्क में आते हैं, तो वे सड़ जाते हैं। इसलिए फलों को दो कुंड के बीच में ऊँचे स्थान पर और फल के नीचे घास फूस(धान की सूखी पत्तियां, बाजरा, गेहूं आदि )रखना चाहिए। यदि फल एक ही स्थान पर रहे तो, जिस तरफ से मिट्टी के साथ संपर्क होता है उन जगहों पर फल में घाव हो जाते है। इसलिए जब फल बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें कटाई से कम से कम एक बार घुमाया जाना चाहिए। प्लास्टिक कवर के कारण, फलों का संपर्क सीधे गीली जमीन से नहीं होता है। इसलिए फलों को नुकसान नहीं पहुंचता है। फल को सूरज की रोशनी से बचाने के लिए, खेत में फलों को हल्दी के पत्तों, सूखे गन्ने के पत्तो,आदि का उपयोग कर के ढक दें। कटाई और उपज: आमतौर पर फूल धारणा 40 दिनों के बाद शुरू होती है और 60 दिनों के बाद छोटे फल दिखाई देने लगते हैं। एक बेल पर केवल दो ही फल रखें। फल आम तौर पर 90 से 120 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार होते हैं और 20 से 30 दिनों में कटाई पूरी हो जाती हैं। फल धारणा से बिक्री के लिए फलों की कटाई तक 40 से 45 दिन तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक होना चाहिए। आम तौर पर, तरबूज की विभिन्न किस्म के अनुसार 20 से 45 टन की उपज प्राप्त की जा सकती है। आम तौर पर ,खरबूज के लिए 10 से 15 टन का उपज प्राप्त की जा सकती है। यदि प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग किया जाता है, तो उपज बढ़ जाती है। कटाई सुबह की जानी चाहिए। यह फलों की ताजगी और आकर्षण को बनाए रखने में मदद करते है और वे अधिक स्वादिष्ट होते हैं। - डॉ. विनायक शिंदे-पाटील, अहमदनगर (सहायक प्राध्यापक, डा. वी.वी.पी. फाऊंडेशन के कृषि महाविद्यालय, विळद घाट, अहमदनगर)
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