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अनार में सूत्रकृमि का नियंत्रण
सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
अनार में सूत्रकृमि का नियंत्रण
भारत में कई राज्यों में अनार की खेती में वृद्धि हुई है। अनार का पेड़ विभिन्न कीटों और रोगों से प्रभावित होता है। अनार में म्लानि रोग के साथ, बड़े पैमाने पर आँखों से न दिखने वाले सूत्रकृमि का संक्रमण दिखाई देता है। इससे किसानों को बहुत बड़ा नुकसान होता है। इसलिए, हम सूत्रकृमि के नियंत्रण के बारे में जानकारी दे रहे हैं । रूट नॉट सूत्रकृमि- अनार की फसल को यह सूत्रकृमि बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाते है। वे जड़ के अंदर रहते हैं और जड़ों से रस को चूसते हैं और अपने पेट से जड़ों में पाचन रस देंते है। इसके कारण पौधों की जड़ में कोशिकाओं की दीवारें घुल जाती हैं और कई स्थानों पर बड़ी कोशिकाएँ बन जाती है। कोशिकाओं की वृद्धि और जड़ों में गाँठ बनती है और पेड़ों में बौनापन बढ़ जाता है। पत्तों में पीलापन और फलों और फूलों की असमय गिरने की मात्रा बढ़ जाती है। पेड़ की उपज घट जाती है और पेड़ म्लानि रोग से ग्रस्त हो जाता है। 1) रेनिफोर्म सूत्रकृमि- महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर यह सूत्रकृमि पाये जाते हैं । ये सूत्रकृमि एक सुई की तरह सूक्ष्म आकार के होते हैं । वे अपने सुपर सूक्ष्म अंगों के साथ जड़ों से रस को चूसते है । इसका परिणाम,पेड़ों में बौनापन और उपज में कमी।
नियंत्रण करने के उपाय- 1) ग्राफ्ट्स तैयार करते समय सूत्रकृमि संक्रमित मिट्टी का उपयोग न करें। 2) अनार की खेती से 1 से 2 साल पहले तक,सब्जियों और दालों जैसी फसलों की खेती नहीं की जानी चाहिए। । 3) अनार की खेती से पहले, जमीन की 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए और इसे गर्मियों में अच्छी तरह से तपने देना चाहिए। 4) अनार की खेती के समय नीम केक का उपयोग करें । 5) अनार फसल में टमाटर, बैंगन, तेज़ मिर्च, ओकरा (भिन्डी), खीरा आदि जैसे अंतर फसलों की खेती न करें। 6) अनार खिलने के समय, पेड़ की जड़ों के पास, प्रति पेड़ 1 स1.5 किग्रा नीम केक दें । 7) सूत्रकृमि को नियंत्रित करने के लिए जैव उर्वरकों का उपयोग करें। उदा. यदि पसिलोमयसिस, ट्राइकोडर्मा प्लस, स्यूडोमोनास आदि का उपयोग करने से सूत्रकृमि को नियंत्रित किया जा सकता है । एग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस, 24 जनवरी 18
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