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सोयाबीन की फसल में राइजोबियम कल्चर का महत्त्व!
सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
सोयाबीन की फसल में राइजोबियम कल्चर का महत्त्व!
फलीदार पौधों की जडों की ग्रंथिकाओं में राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की पैदावर बढ़ाने में सहायक है। राइजोबियम दलहनी फसलों में प्रयोग होने वाला एक जैव उवर्रक है। राइजोबियम कल्चर का प्रयोग राइजोबियिम का प्रयोग बीज का उपचार करने में तथा बुवाई पूर्व गोबर खाद के साथ मिलाकर किया जाता है। बीजोपचार 3 पैकेट 600 ग्राम राइजोबियिम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। उपचार के लिए 1 लीटर पानी में 60 ग्राम गुड़ डालकर गरम कर के घोल बनाएँ और ठंडा होने पर इस में 3 पैकेट राइजोबियिम कल्चर मिलाएँ घोल को धीरे-धीरे लकड़ी के डंडे से हिलाते रहें। इतना घोल 1 हेक्टेयर में बोए जाने वाले बीजों के उपचार लिए पर्याप्त होता है। इस घोल को बीजों पर धीरे-धीरे इस तरह छिड़कना चाहिए कि घोल की परत सब बीजों पर समान रूप से चिपक जाए। इसके बाद इन बीजों को छायादार जगह पर सुखाएं फिर बुवाई करें। मृदा उपचार बुवाई पूर्व 10 पैकेट 2 किलो ग्राम राइजोबियिम प्रति हेक्टेयर के दर से 25 किलो ग्राम गोबर खाद तथा 25 किलो ग्राम मिट्टी के साथ मिलाकर प्रयोग करें। राइजोबियम कल्चर के लाभ_x000D_ राइजोबियम जीवाणु वातावरण मे व्याप्त नत्रजन का स्थिरीकरण कर पौधों की जडों तक पहुचाते हैं। अतः दलहनी फसलों में रासायनिक खाद की कम आवष्यकता होती है। _x000D_ _x000D_ राइजोबियम के प्रयोग से भूमि में नत्रजन की मात्रा बढ़ जाती है तथा उर्वरा बनी रहती है। _x000D_ _x000D_ दलहनों की जड़ों में विद्यमान जीवाणुओं द्वारा संचित नत्रजन अगली फसल द्वारा ग्रहण किया जाता है। राइजोबियम द्वारा यौगिकीक्रत नत्रजन कार्बनिक रूप में होने के कारण पूर्ण रूप से पौधों को प्राप्त होता है। _x000D_ _x000D_ राइजोबियम जीवाणु वातावरण की स्वतंत्र नाइट्रोजन को पौधों तक पहुंचाते हैं, लिहाजा दलहनी फसलों को अलग से नाइट्रोजन देने की जरूरत नहीं रहती है। _x000D_ _x000D_ जीवाणुओं के द्वारा यौगिकीकृत नाइट्रोजन कार्बनिक रूप में होने के कारण इस का क्षय कम होता है, जबकि नाइट्रोजन वाले उर्वरकों का एक बड़ा हिस्सा तमाम कारणों से इस्तेमाल नहीं हो पाता है। यह राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा पौधों को मिल सकता है। _x000D_ _x000D_ दलहनी फसलों की जड़ों में मौजूद जीवाणुओं द्वारा जमा की गई नाइट्रोजन अगली फसल में इस्तेमाल हो जाती है। _x000D_ _x000D_ राइजोबियम कल्चर के इस्तेमाल से चना, अरहर, मूंग व उड़द की उपज में 20-30 फीसदी व सोयाबीन की उपज में 50-60 फीसदी तक का इजाफा होता है। _x000D_ _x000D_ चारे वाली फसलें जैसे बरसीम व रिजका वगैरह में प्रोटीन का संचयन अधिक होता है और जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। _x000D_ _x000D_ जीवाणु खाद के इस्तेमाल से दलहनी फसलें हर साल मिट्टी में नाइट्रोजन जमा करती हैं, जिस से उर्वरक पर होने वाला खर्च कम होता है। _x000D_ _x000D_ सावधानियां_x000D_ _x000D_ हर दलहनी फसल में एक खास प्रजाति के कल्चर का ही इस्तेमाल करें। अन्य फसल के कल्चर का इस्तेमाल करने से जड़ों में गांठें नहीं बनेंगी और कल्चर का फायदा फसल को नहीं मिलेगा। _x000D_ _x000D_ पैकेट पर लिखी आखिरी तारीख से पहले ही कल्चर का इस्तेमाल करें. पुराने पैकेटों में जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। _x000D_ _x000D_ पैकेटों को बोआई से पहले ही खोलना चाहिए और बीजोपचार के फौरन बाद ही बीज बो देने चाहिए या किसी छायादार जगह पर सुखाने के कुछ देर बाद ही बो देने चाहिए। _x000D_ _x000D_ यदि बीजों को कीटनाशक व फफूंदनाशक रसायनों से उपचारित किया जाना हो तो पहले फफूंदनाशक, फिर कीटनाशक और अंत में राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए। _x000D_ _x000D_ गुड़पानी के गरम घोल में राइजोबियम कल्चर का पैकेट नहीं डालना चाहिए। _x000D_ _x000D_ _x000D_ _x000D_ _x000D_
स्रोत:- एग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस_x000D_ यदि आपको दी गई जानकारी उपयोगी लगे तो, लाइक करें और अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें।
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