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मूंगफली की पत्तियों का रंग देखकर जानिए किस पोषक तत्व की है कमी!
आज का सुझावगांव कनेक्शन
मूंगफली की पत्तियों का रंग देखकर जानिए किस पोषक तत्व की है कमी!
वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार पौधों के लिए 17 पोषक तत्व चाहिए होते हैं। इन पोषक तत्वों में सबसे अपने-अपने कार्य हैं। ज्यादातर किसान खेतों में डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश आदि डालते हैं। कुछ जागरूक किसान जिंक और दूसरे सूक्ष्म पोषकत्तवों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से कई पोषक तत्व गोबर की खाद, हरी खाद या फिर केंचुआ खाद में होते हैं। जबकि कुछ को अलग से डालना पड़ता है। जो किसान सिर्फ नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश ही देते हैं उन्हें नुकसान उठाना पड़ जाता है। इसलिए किसानों को संतुलित पोषक तत्व देने चाहिए। कई बार पत्तियों की रंगत और पौधे खुद बताते हैं कि उनमें किस पोषक तत्व की कमी है। "किसान अगर पत्तियों की रंगत पर नजर रखे तो वो आसानी से समझ सकता है कि उनमें किस पोषत तत्व की कमी है। या कौन सा रोग लगा है।" नाइट्रोजन की कमी के लक्षण:- नाइट्रोजन या नत्रजन से प्रोटीन बनती है जो जीव द्रव्य का अभिन्न अंग है। फॉस्फोरस न्यूक्लिक अम्ल, फास्फोलिपिड्स व फाइटीन के निर्माण में सहायक है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है। यह कोशा की झिल्ली, क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकान्ड्रिया का मुख्य अवयव है। फास्फोरस मिलने से पौधों में बीज स्वस्थ पैदा होता है तथा बीजों का भार बढ़ना, पौधों में रोग व कीटरोधकता बढ़ती है। फास्फोरस के प्रयोग से जड़ें तेजी से विकसित तथा मजबूत होती हैं। पौधों में खड़े रहने की क्षमता बढ़ती है। इससे फल जल्दी आते हैं, फल जल्दीबनते है व दाने जल्दी पकते हैं। यह नत्रजन के उपयोग में सहायक है तथा फलीदार पौधों में इसकी उपस्थिति से जड़ों की ग्रंथियों का विकास अच्छा होता है। फॉस्फोरस की कमी के लक्षण:- फॉस्फोरस कम होने पर पौधे छोटे रह जाते हैं, पत्तियों का रंग हल्का बैगनी या भूरा हो जाता है। फास्फोरस गतिशील होने के कारण पहले ये लक्षण पुरानी (निचली) पत्तियों पर दिखते हैं। दाल वाली फसलों में पत्तियां नीले हरे रंग की हो जाती हैं। पौधों की जड़ों की वृद्धि व विकास बहुत कम होता है कभी-कभी जड़े सूख भी जाती हैं। अधिक कमी में तने का गहरा पीला पड़ना, फल व बीज का निर्माण सही न होना। इसकी कमी से आलू की पत्तियां प्याले के आकार की, दलहनी फसलों की पत्तियाँ नीले रंग की तथा चौड़ी पत्ती वाले पौधे में पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है। पोटैशियम की कमी के लक्षण:- पोटैशियम जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है। स्टार्च व शक्कर के संचरण में मदद करता है। पौधों में प्रोटीन के निर्माण में सहायक है। अनाज के दानों में चमक पैदा करता है। फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है। आलू व अन्य सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है। सब्जियों के पकने के गुण को सुधारता है। मृदा में नत्रजन के कुप्रभाव को दूर करता है। पोटैशियम कमी के लक्षण पोटैशियम की कमी से पत्तियां भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं तथा समय से पहले गिर जाती हैं। पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़ते हैं। इसी कमी से मक्का के भुट्टे छोटे, नुकीले तथा किनारों पर दाने कम पड़ते हैं। आलू में कन्द छोटे तथा जड़ों का विकास कम हो जाता है पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है। मैग्नीशियम की कमी के लक्षण:- मैग्नीशियम, क्रोमोसोम, पोलीराइबोसोम तथा क्लोरोफिल का अनिवार्य अंग है। पौधों के अन्दर कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है। पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है। चारे की फसलों के लिए महत्वपूर्ण है। मैग्नीशियम की कमी होने पर पत्तियां आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं। दलहनी फसलों में पत्तियों की मुख्य नसों के बीच की जगह का पीला पड़ना। सल्फर की कमी के लक्षण:-_x000D_ सल्फर यानि गंधक अमीनो अम्ल, प्रोटीन (सिसटीन व मैथिओनिन), वसा, तेल एव विटामिन्स के निर्माण में सहायक है। विटामिन्स (थाइमीन व बायोटिन), ग्लूटेथियान एवं एन्जाइम 3ए22 के निर्माण में भी सहायक है। तिलहनी फसलों में तेल की प्रतिशत मात्रा बढ़ाता है। यह सरसों, प्याज व लहसुन की फसल के लिए जरूरी है। तम्बाकू की पैदावार 15-30 प्रतिशत तक बढ़ती है। गन्धक कमी की कमी होने पर नई पत्तियों का पीला पड़ना व बाद में सफेद हो जाती हैं। तने छोटे एवं पीले पड़ जाते हैं। मक्का, कपास, तोरिया, टमाटर के तने लाल हो जाते हैं। ब्रेसिका जाति (सरसों) की पत्तियों का प्यालेनुमा हो जाना।_x000D_ _x000D_ लोहा की कमी के लक्षण:-_x000D_ आयरन साइटोक्रोम्स, फैरीडोक्सीन व हीमोग्लोबिन का मुख्य अवयव है। क्लोरोफिल एवं प्रोटीन निर्माण में सहायक है। यह पौधों की कोशिकाओं में विभिन्न ऑक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं मे उत्प्रेरक का कार्य करता है। श्वसन क्रिया में आक्सीजन का वाहक है। लोहा-कमी के लक्षण पत्तियों के किनारों व नसों का अधिक समय तक हरा बना रहना। नई कलिकाओं की मृत्यु को जाना तथा तनों का छोटा रह जाना। धान में कमी से क्लोरोफिल रहित पौधा होना, पैधे की वृद्धि का रूकना।_x000D_ _x000D_ जस्ता (जिंक) की कमी के लक्षण:-_x000D_ जस्ता (जिंक) कार्य कैरोटीन व प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है। हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में सहायक है। यह एन्जाइम (जैसे-सिस्टीन, लेसीथिनेज, इनोलेज, डाइसल्फाइडेज आदि) की क्रियाशीलता बढ़ाने में सहायक है। क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करता है। जस्ता की कमी होने पर पत्तियों का आकार छोटा, मुड़ी हुई, नसों मे निक्रोसिस व नसों के बीच पीली धारियों का दिखाई पड़ती हैं। गेहूं में ऊपरी 3-4 पत्तियों का पीला पड़ना। फलों का आकार छोटा व बीज की पैदावार का कम होना। मक्का एवं ज्वार के पौधों में बिलकुल ऊपरी पत्तियाँ सफेद हो जाती हैं। धान में जिंक की कमी से खैरा रोग हो जाता है। लाल, भूरे रंग के धब्बे दिखते हैं।_x000D_ _x000D_ बोरान की कमी के लक्षण:-_x000D_ यह पौधों में शर्करा के संचालन मे सहायक है। परागण एवं प्रजनन क्रियायों में सहायक है। दलहनी फसलों की जड़ ग्रन्थियों के विकास में सहायक है। यह पौधों में कैल्शियम एवं पोटैशियम के अनुपात को नियंत्रित करता है। यह डीएनए, आरएनए, एटीपी पेक्टिन व प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक है।_x000D_
स्रोत:- गांव कनेक्शन _x000D_ प्रिय किसान भाइयों दी गई जानकारी यदि आपको उपयोगी लगी, तो इसे लाइक करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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