बागवानीDainik Jagran
मसालों की खेती से निकलेगी खुशहाली की खुशबू!
👉🏻पौष्टिकता और औषधीय गुणों के साथ ही मसाले खाने में जान ही नहीं डालते, बल्कि इनकी खेती किसानों को समृद्ध भी बना सकती है। हां इसकी खेती के लिए जानकारी के साथ देखभाल और सजगता की जरूरत होती है। सही समय पर खाद व पानी देने के साथ बीमारियों पर भी पैनी नजर रखनी होती है। इससे कम क्षेत्र फल में अन्य फसलों के मुकाबले किसान अधिक धन कमा सकते हैं।
प्रदेश में 16 मसालों की खेती:-
👉🏻देश में 52 तरह के मसालों की खेती होती है। इसमें से 16 मसालों की पैदावार प्रदेश में होती है। इनमें हल्दी, अदरक, मिर्च, लहसुन, धनिया, मेथी, सौंफ, अजवाइन, कलौंजी, सोया शामिल हैं।
प्रति हेक्टेयर उत्पादन:-
👉🏻धनिया एवं सौंफ से 16-18 कुंटल प्रति हेक्टेयर, अजवाइन से 10-12 कुंटल प्रति हेक्टेयर, मेथी से 12-15 कुंटल प्रति हेक्टेयर और सोया से 8-10 कुंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है।
-:देश में मसालों का उत्पादन:-
- भारत को मसालों की भूमि कहा जाता है
- गुजरात व राजस्थान को मसालों का कटोरा कहा जाता है
- उप्र का उत्पादन में नौवां स्थान है।
- देश मसालों की दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है।
- काली मिर्च को किंग ऑफ स्पेसिज कहते हैं।
- छोटी इलायची को क्वीन ऑफ स्पेसिज कहते हैं।
अक्टूबर से नवंबर के बीच हो बुवाई:-
👉🏻सीएसए कृषि विवि के प्रोफेसर व मसाला योजना के सह अन्वेषक डॉ. संजीव सचान के मुताबिक ऊसर तथा पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि मसालों की खेती के लिए उपयुक्त है। अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। प्रदेश में बीज मसालों की बुवाई का उचित समय अक्टूबर से नवंबर तक है। खेत में अच्छी नमी होने पर संस्तुत दूरी के अनुसार बुआई होनी चाहिए। सुनिश्चित जमाव के लिए धनिया बीज को बुवाई से पहले रगड़ कर दो भागों में कर लें।
खाद, उर्वरक एवं सिंचाई:-
👉🏻सीएसए कृषि विवि के प्रोफेसर व मसाला योजना के प्रभारी डॉ. एके दुबे ने बताया कि खेत की तैयारी के समय 20-25 टन गोबर या कम्पोस्ट की खाद मिलाकर भांति तैयार किया जाए। संस्तुत मात्रा के अनुसार आधी नाइट्रोजन, पूरी फास्फोरस व पोटाश को अंतिम जुताई के समय डालना चाहिए। आधी नाइट्रोजन बुवाई के 40-45 दिन बाद फसल में टॉप ड्रेसिंग के रूप में दी जाए। रबी में बोई फसल के लिए 15-20 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करना चाहिए। पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए बुवाई के 20-25 दिनों के अंतराल पर दो बार निराई गुड़ाई की जाए। प्रथम सिंचाई से पूर्व एक निराई कर खरपतवार निकालने से उपज अच्छी होती है।
कब करें कटाई:-
- धनिया में मध्य छत्रकों के पीला पड़ते ही कटाई करें।
- कलौंजी में 125-140 दिन में जब फलियों का रंग पीला हो जाए तब कटाई करें।
- अजवाइन करीब 125 दिन में पक जाती है। बंडल बनाकर 2-3 दिन सुखाएं। डंडों से पीटकर दाने अलग कर लें।
सीएसए में तैयार फसलों की प्रजातियां:-
👉🏻धनिया- आजाद धनिया 1, आजाद धनिया 2, पंत हरीतमा
👉🏻सौंफ- आजाद सौंफ
👉🏻कलौंजी- आजाद कलौंजी
👉🏻मेथी- आजाद मेथी 1, आजाद मेथी 2
👉🏻अजवाइन- आजाद अजवाइन 1
👉🏻सोया- यूरोपियन सोया, एनआरसीएसएस, एडी 1
किसानों के लिए सुझाव:-
- अगर धनिया का पाउडर बनाने के लिए बाजार में बेचना है तो बीज का हरा रंग भूरे रंग में बदलने से पहले कटाई कर लेनी चाहिए। जिससे पाउडर का रंग हरा और खुशबूदार बना रहे। बीज उत्पादन के लिए दाने का रंग भूरा हो जाए, तभी कटाई की जाए।
- देर से कटाई करने पर दाने खेत में गिर जाते हैं।
- धारदार हंसिया से कटाई करें तो दाने नहीं गिरते हैं।
- कटे हुए पौधों के बंडल बना लिए जाएं। उन्हें खलिहान में लाकर डंडों से पीटकर दाने अलग कर लें।
- एक साथ पूरे खेत की कटाई न करें।
- पौधे सूखने पर एक ही स्थान में एकत्रित करें।
- बीजों को सुखाने के बाद भंडारित करें।
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स्रोत:- Dainik Jagran,
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