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मशीन से उगाएं चारा, साल भर पशुओं को मिलेगी हरी घास!
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मशीन से उगाएं चारा, साल भर पशुओं को मिलेगी हरी घास!
👉🏻 पशुओं के लिए हरा चारा जुटाना अब टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. जहां पर्याप्त खेत हैं वहां किसान समझ नहीं पाता कि पशु चारा उगाये उसी खेत में धान-गेहूं या कोई नकदी फसल. इन सभी बातों का पशु चारे के उत्पादन पर बड़ा असर देखा जा रहा है. इस फिक्र से निपटने के लिए एक टेक्नोलॉजी कंपनी ने अच्छा उपाय ढूंढा है. बेंगलोर की एक स्टार्टअप कंपनी एग्रीटेक ने ऐसी मशीन बनाई है जिससे चारे का उत्पादन किया जा सकेगा. 👉🏻 एक मशीन देखने में फ्रीज जैसी है लेकिन यह चारा उगाती है. एक हफ्ते में 4-5 पशुओं का चारा आराम से उगा लिया जाता है. मशीन से कम लागत में पशुओं के लिए पौष्टिक चारा उगाना आसान हो गया है. देश की आबादी इतनी बड़ी है कि प्रति व्यक्ति खेत का रकबा काफी कम आता है. ऐसे में अनाज उगाएं या चारा, किसानों के लिए यह बड़ा सवाल है. इससे निपटने के लिए चारा उगाने वाली मशीन बनाई गई है. इस मशीन से एक दिन में 25 से 30 किलो चारा आसानी से बनाया जा सकता है. कम स्थान में ज्यादा चारा 👉🏻 कम जमीन में ज्यादा चारे का उत्पादन हो जाए, तो कितनी अच्छी बात है. इसी सिद्धांत के आधार पर मशीन से चारा उगाने की तकनीक इजाद की गई है. फ्रीज के आकार की ये मशीन छोटे से स्थान पर अधिक उपज देने की गारंटी देती है. इस मशीन को खास तौर से पशुओं को पौष्टिक चारा देने के लिए ही बनाया गया है. इस मशीन को रखने के लिए महज 4 फीट लंबी और तीन फीट चौड़ी जगह चाहिए. फ्रीज के आकार की इस मशीन की ऊंचाई भी सिर्फ 7 फीट है. इस स्टार्टअप ने किया कमाल 👉🏻 चारे की इस मशीन को बेंगलोर के एग्रीटेक स्टार्टअप ने बनाया है और मशीन का नाम कंबाला रखा है. कंबाला नाम रखने के पीछे भी एक खास वजह है. कंबाला कर्नाटक में हर साल आयोजित होने वाली भैंसा दौड़ प्रतियोगिता है. उसी प्रतियोगिता के आधार पर चारे की इस मशीन का नाम कंबाला रखा गया है. कंबाला मशीन के अंदर 7 रैक बनाए गए हैं जिसमें चारा उगाया जाता है. हर रैक में 4 ट्रे लगी हैं. हर ट्रे में उच्च प्रोटीन वाले मक्का के 700 ग्राम बीज हर हफ्ते बोये जा सकते हैं. किसानों को इससे कई बड़ी सुविधाएं मिलती हैं. जैसे वे मक्के का चारा काटने के बाद उसमें गेहूं या जौ के बीच बो सकते हैं. आसानी से उगाएं 25-30 किलो चारा 👉🏻 फ्रीज के अंदर चारा हाइड्रोपोनिक टेक्नोलॉजी के जरिये उगाया जाता है. यह ऐसी तकनीक है जिसमें मिट्टी का इस्तेमाल न कर पानी का उपयोग करते हैं और उसी से चारा उगाते हैं. बुवाई के कुछ ही दिन बाद रैक में हरा और ताजा चारा उग जाता है. यह चारा दुधारू पशुओं के लिए बेहद पौष्टिक होता है. इस छोटी से मशीन से हर हफ्ते 25-30 किलो हरा चारा लिया जा सकता है. चारे की इस मात्रा से 4-5 गायों का पेट आराम से भरा जा सकता है. मशीन के अंदर सिंचाई के लिए माइक्रो स्प्रिंकलर लगे हैं जो जरूरत पड़ने पर पौधों को पानी उपलब्ध कराते हैं. यह मशीन तीन दिन में मात्र 50 लीटर पानी लेती है जबकि किसी खेत में 1 किलो चारा उगाने के लिए 70-100 लीटर तक पानी चाहिए होता है. देश में कुल कितनी मशीनें 👉🏻 इस मशीन को बाहर से काले रंग के एक जाल से कवर किया गया है. यह जाल वेंटिलेशन के लिए है जो दिन में मशीन के अंदर का तापमान बढ़ने नहीं देता है. बिजली से चलने वाली इस मशीन को 30 हजार रुपये में खरीद सकते हैं. बिजली का खर्च बहुत ज्यादा नहीं है. साल भर में 70 रुपये से भी कम की बिजली खपत होती है. सौर ऊर्जा से चलने वाली कंबाला मशीन भी उपलब्ध है, लेकिन इसकी कीमत 45 हजार रुपये है. आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में सौर ऊर्जा से चलने वाली 41 मशीनें लगाई गई हैं. राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में भी कई मशीनें लगी हैं. इस मशीन को पिछले साल ही बनाया गया है और देश में अब तक 130 मशीनें लग चुकी हैं। 👉🏻 खेती तथा खेती सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए कृषि ज्ञान को फॉलो करें। फॉलो करने के लिए अभी ulink://android.agrostar.in/publicProfile?userId=558020 क्लिक करें। स्रोत:- TV 9 Hindi, 👉🏻 प्रिय किसान भाइयों अपनाएं एग्रोस्टार का बेहतर कृषि ज्ञान और बने एक सफल किसान। यदि दी गई जानकारी आपको उपयोगी लगी, तो इसे लाइक 👍 करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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