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मप्र के किसान ने किया समस्‍या को दूर, इस तरह घटाई खेती की लागत!
कृषि वार्ताजागरण
मप्र के किसान ने किया समस्‍या को दूर, इस तरह घटाई खेती की लागत!
👉खेती में सिंचाई की जरूरत और बढ़ती लागत किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है लेकिन जरा सी जागरूकता से किसान इस समस्या को दूर कर सकते हैं। इसका उदाहरण मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के ग्राम चक्क पाटनी के किसान विनोद शाह हैं, जिन्होंने बारिश का पानी रोककर धान की पौध रोप दी और गेहूं की फसल के अवशेष से तैयार जैविक खाद का उपयोग कर सोयाबीन की फसल को कीट प्रकोप से बचा लिया। किसान के इस एक पंथ, दो काज के फार्मूले से आज उनके खेत में धान और सोयाबीन दोनों फसल लहलहा रही हैं। चिंता से हुए मुक्त:- 👉खरीफ सीजन में इस बार किसान कहीं अतिवृष्टि से तो कहीं कीट प्रकोप से फसल बर्बाद होने के कारण परेशान हैं लेकिन विनोद शाह इन परेशानियों से मुक्त हैं। वह कहते हैं कि खेत में तालाब बनाने से आसपास के खेतों में जलभराव नहीं हुआ। वहीं, जैविक खाद के उपयोग से सोयाबीन की फसल पर पीला मोजेक जैसी बीमारियां निस्प्रभावी रहीं। जिसकी वजह से उनके खेत की फसल अन्य किसानों की फसल से बेहतर है। बताते हैं कि सोयाबीन के पौधे साढ़े तीन फीट ऊंचे हो गए हैं। फलियों में दाने का भराव भी अच्छा है। जिसका फायदा अधिक पैदावार के रूप में होगा। तालाब से की धान की सिंचाई:- 👉धान की फसल के लिए सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है। यही वजह है कि किसान बिना निजी जलस्रोत के धान की फसल नहीं लगाते। विनोद शाह के खेत में पानी का स्रोत नहीं था। उन्होंने जून माह में ही बारिश का पानी जमा करने के लिए एक तालाब बना लिया। दो दिन की बारिश में यह तालाब लबालब हो जाता है। शाह ने 60 गुणा 60 फीट के एक खेत में करीब पांच फीट गहरी खोदाई कराई। बारिश का पानी इसमें संजो लिया। इसी से वह धान की फसल के साथ अन्य फसल की सिंचाई भी पंप लगाकर करते रहे। जब-जब बारिश होती, उनका यह तालाब फिर लबालब हो जाता। इस तरह उनकी सिंचाई की जरूरत पूरी होती रहती। शाह ने पहली बार 12 बीघा में धान की फसल लगाई है। जिसकी पूरी सिंचाई तालाब के पानी से ही हुई है। अवशेष की खाद से लहलहाई फसल:- 👉शाह ने धान और सोयाबीन की फसल में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया। वह बताते हैं कि रबी के सीजन में गेहूं की फसल लेने के बाद किसान अवशेष को आग लगा देते हैं। आग से खेत की उर्वरा शक्ति कम होती है। इस बार अवशेष जलाने की बजाय खेत में प्लाऊ के जरिये गहरी जुताई कर उसे जमीन में ही नष्ट कर दिया। बारिश में यही अवशेष धीरे-धीरे डिकम्पोज होकर खड़ी फसल को नाइट्रोजन एवं कार्बन देती है, जिससे फसल बगैर रासायनिक उर्वरक के बढ़त लेती रहती है। डेढ़ हजार रुपए बीघा घटाई लागत:- 👉खेती में नवाचार कर शाह ने लागत में डेढ़ हजार रुपए प्रति बीघा की बचत की है। वह कहते हैं कि एक बीघा में रासायनिक खाद पर 500 रुपए और सिंचाई पर एक हजार रुपए खर्च होते हैं। उन्हेंं यह खर्च नहीं उठाना पड़ा। उनके इस प्रयोग को देखकर क्षेत्र के अन्य किसान भी इस तरह की खेती के लिए प्रेरित हो रहे हैं। उनके पड़ोसी किसान राजेश पाठक भी खेती की यही तकनीक अपना रहे हैं। जमीन की बढ़ती है उर्वरा शक्ति:- 👉गंजबासौदा स्थित कृषि महाविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डा. योगेश पटेल का कहना है कि गेहूं की फसल लेने के बाद पौधों के अवशेष को खेत मे ही मिला देने से यह जैविक खाद का काम करता है। इससे आगामी फसल को पूरे 16 तरह के पोषक तत्व मिलते है, जिसकी वजह से न केवल फसल की पैदावार अच्छी होती है बल्कि जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। 👉उनके मुताबिक इस खाद का उपयोग करने से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जिसकी वजह से फसल पर अन्य बीमारियों का प्रकोप नहीं फैलता। डा. पटेल का कहना है कि अधिकांश किसान गेहूं की फसल लेने के बाद पौधों के अवशेष में आग लगा देते है, जिससे जमीन में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवी नष्ट हो जाते है। इससे जमीन बंजर होने का खतरा बढ़ जाता है। स्रोत:- Jagran, 👉 प्रिय किसान भाइयों दी गई उपयोगी जानकारी को लाइक 👍 करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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