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मध्यप्रदेश में पैदा होगा विश्व का दूसरा महंगा मसाला!
👉🏻कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने केसर के बाद विश्व के दूसरे नंबर के सबसे महंगे मसाले वेनीला की पैदावार शुरू की है। उन्होंने इसके लिए जरूरी वातावरण तैयार किया है। कॉलेज परिसर के एक एकड़ में फसल उगाई गई है। अब किसानों को भी इसकी खेती करने का तरीका और उससे होने वाली आय के बारे में जागरूक किया जा रहा है। वेनीला का उपयोग आइसक्रीम, केक, बिस्किट, दही, चॉकलेट जैसे कई प्रकार के खाद्य उत्पादों से लेकर परफ्यूम, मॉइश्चराइजर, शैंपू, साबुनों आदि में होता है।
👉🏻केसर को देश का सबसे महंगा महंगा मसाला माना जाता है। यह बाजार में एक लाख रुपए किलो तक बिकता है। वहीं दूसरे नंबर की फसल वेनीला हो सकती है। इसका फ्लेवर के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी कीमत भी बाजार में 36 हजार रुपए प्रति किलो है। इसे उगाने का सफल प्रयोग इंदौर के कृषि महाविद्यालय में हो चुका है। कई किसानों ने इसकी खेती भी शुरू कर दी है।
👉🏻महंगी है फसल की लागत : इस फसल की लागत शुरुआती दौर में किसानों को महंगी लग सकती है लेकिन 6 महीने में यह तैयार हो जाती है और किसान को प्रति एकड़ करीब 25 लाख रुपए तक की सालाना कमाई हो सकती है। पहली बार में लागत 12 से 15 लाख रुपए आती है लेकिन एक बार फसल लगने के एक साल बाद इसमें न के बराबर खर्च आता है। यही फसल 10 से 15 साल तक लगातार उत्पादन देती है।
👉🏻गर्म और नमी वाले वातावरण की जरूरत : वेनीला की फसल के लिए गर्म व नम वातावरण तैयार करना होता है। वैज्ञानिकों ने नमीयुक्त वातावरण बनाने के लिए फसल के ऊपर काली जाली लगाई है। सूरज की रोशनी नेट रोक लेती है और उसके अंदर के वातावरण में नमी पैदा करती है। इसका पौधा बेल के रूप में होती है, इसलिए इसे सहारा देने के लिए सीमेंट के खंभे लगाए जाते हैं। साल में दो बार फसल आती है। पहले फूल बनता है, उसे माचिस की तीली से खोला जाता है और फिर फली के रूप फल लगते हैं। इसी फल को वेनीला कहा जाता है।
👉🏻यहां होती थी खेती : वेनीला मूल रूप से दक्षिण पूर्वी मैक्सिको और मध्य अमेरिका के कुछ हिस्सों में पाया जाने वाला पौधा है। इसके अलावा कटिबंध क्षेत्र के अन्य भागों जैसे जंजीबार, युगांडा, टांगो और वेस्टइंडीज में इसकी खेती की जाती है। वहीं भारत में इसे केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ भागों में उगाया जाता है।
कई किसान कर रहे खेती:-
👉🏻कॉलेज में प्रयोग के बाद किसानों को भी इसकी पैदावार के बारे में समझाइश दी थी। इसके बाद जिले के कई किसानों ने इसका प्रयोग किया है। तिल्लौर खुर्द में राजेश झंवर, मनावर में श्रीधर पाटीदार इसकी खेती कर रहे हैं। राऊ व गोम्मटगिरि में भी उसे उगाया जा रहा है। - हरिसिंह ठाकुर, वैज्ञानिक, कृषि कॉलेज, इंदौर!
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स्रोत:- Nai Dunia,
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