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मछली पालन से आत्मनिर्भर बन रहा हैं किसान!
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मछली पालन से आत्मनिर्भर बन रहा हैं किसान!
🐟झारखंड इन दिनों मछली पालन में आत्मनिर्भर बन रहा है. एक वक्त था जब झारखंड में मात्र 14000 टन मछली पालन होता था. पर झारखंड के किसानो की मेहनत और सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं के बदौलत आज झारखंड में दो लाख 23 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. राजधानी रांची के युवा मत्स्य पालक निशांत कुमार, अनूप कुमार और अक्षत मिश्रा भी झारखंड के मछली उत्पादन में अपना सहयोग दे रहे हैं! 2018 में हुई शुरुआत- 👉निशांत कुमार ने बताया कि एमबीए करने के बाद वो एक बड़ी कंपनी में काम करते थे. फिर उन्होंने कुछ अलग करने का मन बनाया. अपने दोस्तों के मिलकर स्मॉल स्केल इंडस्ट्री करने का प्लान बनाया जिसके तहत पेपर प्लेट और अगरबत्ती पालन करने का मन बनाया पर बात नहीं बनी. इसके बाद ढाबा खोलने का मन बनाया पर इन तीनों की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. रातु के छोटानागपुर फन कैसल पार्क में बैठे हुए तीनों दोस्तों ने एक्वाकल्चर में बिजनेस करने का मन बनाया और मछली पालन करने की ठानी. इस तरह से 2018 में उन्होंने किगफिशरीज की शुरुआत की! मछली पालन के लिए था संसाधन- 👉रातु स्थित पार्क में 70 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ तालाब है. जिसमें साल भर पानी रहता है. इसके अलावा पार्क के अंदर पर्याप्त जमीन भी थी. सबसे पहले तीनों दोस्तों ने मिलकर मछली पालन की पूरी जानकारी हासिल की. इसके बाद प्रयोग के तौर पर 25X12 फीट का सीमेंट का टैंक बनाया और उसमें मछली पालन की शुरुआत की. यहां पर उन्होंने कवई नस्ल की मछली का उत्पादन किया. पहली बार में ही अच्छा उत्पादन हुआ. कवई मछली बाजार में 600-700 रुपये किलो बिकती है. नयी तकनीक का किया इस्तेमाल- 👉निशांत और उनके दोस्तों ने सोचा कि पारपंरिक तकनीक से मछली पालन करने से बेहतर है कि नयी तकनीक को अपनाया जाए. उन्होंने बॉयोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करने का मन बनाया फिर, 25 डिसमिल जमीन में बॉयोफ्लॉक की 24 यूनिट को इंस्टॉल किया. बॉयोफ्लॉक के जरिये उन्हें बेहतर उत्पादन मिला. एक यूनिट बॉयोफ्लॉक में 340 किलो मछली का उत्पादन प्रति छह महीने पर होता है. निशांत बॉयोफ्लॉक में पंगाल, तेलापिया और कवई मछली का उत्पादन करते हैं! कहां बेचते हैं मछलियां- 👉निशांत बताते हैं कि उनकी अधिकांश मछलिया स्थानीय बाजारो में बिक जाती है. इसके अलावा बिहार में वो मछली भेजते हैं. रांची के अलावा अन्य जिलों के बाजारों में भी किंगफिशरीज की मछली सप्लाई होती है. उनके पास तिलापिया, रेहु, कतला, मृगल ,कॉमन कार्प, बिग हेड सिल्वर कार्प और ग्रास कार्प मछली का उत्पादन होता है! गाइडलाइंस का सही तरीके से पालन करने पर सफल हुआ बॉयोफ्लॉक- 👉निशांत बताते हैं कि बॉयोफ्लॉक के लिए दिये गये दिशानिर्देश का सही तरीके से पालन करना उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ. इसके साथ ही उन्होंने बड़े पैमाने पर बॉयोफ्लॉक का इस्तेमाल किया. उन्होंने बताया कि इसके लिए तकनीकी सहयोग उन्हें बिहार के मोतीपुर स्थित मात्सयिकी क्षेत्रिय अनुसंधान केंद्र से मिला. बॉयोफ्लॉक उन्होंने जर्मनी से मंगाया है. सरकार से मिला सहयोग- 👉निशांत बताते हैं कि मछली पालन के लिए उन्हें राज्य सरकार से भी काफी सहयोग मिला है. विभाग के अधिकारी भी समय समय पर मार्गदर्शन करते हैं. उनके फार्म से हर दिन 200-300 किलो मछली का उत्पादन होता है. इसके जरिये निशांत सात से आठ लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. स्त्रोत:- TV9 👉 प्रिय किसान भाइयों अपनाएं एग्रोस्टार का बेहतर कृषि ज्ञान और बने एक सफल किसान। दी गई जानकारी उपयोगी लगी, तो इसे लाइक 👍 करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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