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बेबी कॉर्न की खेती से करें अच्छी कमाई!
सलाहकार लेखउत्तरप्रदेश कृषि विभाग
बेबी कॉर्न की खेती से करें अच्छी कमाई!
👉किसान भाइयों यह मक्का🌽के पौधे का वह अनिषेचित भुट्टा🌽है जो सिल्क आने के 2-3 दिन के अन्दर तोड़कर उपयोग में लाया जाता है। शिशु मक्का🌽का उपयोग सलाद, सूप, सब्जी, अचार एवं कैण्डी, पकौड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी लड्डू हलवा, खीर इत्यादि के रूप में होता है। 👉शिशु मक्का🌽एक स्वादिष्ट व पौष्टिक आहार है तथा पत्ती में लिपटी होने के कारण कीटनाशक दवाईयों के प्रभाव में मुक्त होता है। शिशु मक्का🌽में फास्फोरस भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। इस के अतिरिक्त इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा व मिटामिन भी उपलबध है। कोलेस्ट्राल रहित एवं रेशों के अधिकता के कारण यह एक निम्न कैलोरी युक्त आहार है जो ह्रदय रोगियों के लिए काफी लाभदायक है। Add Image Here 👉उत्पादन तकनीक:- काफी मात्रा में पौधों की संख्या, नाइट्रोजन की अधिक मात्रा एवं शीघ्र कटाई को छोड़कर शिशु मक्का🌽की सभी सस्य क्रियायें मक्का🌽के समान है। 👉भूमि का चुनाव:- शिशु मक्का🌽की खेती के लिए पर्याप्त जीवांश युक्त दोमट मिट्टी अच्छी होती है। 👉खेत की तकनीक:- पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा शेष दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर द्वारा करके पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा खेत पलेवा करके तैयार करना चाहिए। 👉किस्मों का चयन:- शिशु मक्का🌽की खेती के लिए कम समय में पकने वाली मध्यम ऊँचाई की एकल क्रॉस संकर किस्में सबसे अधिक उपयुक्त होती है जो निम्नलिखित हैं 👉किस्म का नाम:- बी.एल.-42, प्रकाश, एच.एम.-4, आजाद कमल (संकुल) 👉पकने की अवधि:- कम समय में पकने वाली एकल क्रॉस संकर किस्में, जिसमें सिल्क आने की अवधि 70-75 दिन खरीफ में, 45-50 दिन बसन्त में एवं 120-130 दिन जाड़ें के मौसम में है। 👉बुआई का समय:- उत्तर भारत में शिशु मक्का🌽फरवरी से नवम्बर के मध्य कभी भी बोया जा सकता है। 👉बुआई की विधि:- बुआई मेड़ों के दक्षिणी भाग में करनी चाहिए तथा मेड़ से मेड़ एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी० ×15 सेमी० रखनी चाहिए। 👉बीज दर:- संकर किस्मों के टेस्ट भार के अनुसार प्रति हेक्टेयर 22-25 किग्रा० बीज दर उपयुक्त होती है। 👉उर्वरक की मात्रा:- अच्छी उपज के लिए 8-10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद एवं 150:60:60:25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश तथा जिंक सल्फेट का प्रयोग आवश्यक है। खरीफ में नाइट्रोजन को तीन भाग करके खेत में डालना चाहिए। पूरा फास्फोरस, पूरा पोटाश, पूरा जिंक सल्फेट एवं 1/3 भाग नाइट्रोजन बुआई के समय 25 दिन के बाद तथा शेष 1/3 भाग नाइट्रोजन 40 दिन बाद डालना चाहिए। रबी में नाइट्रोजन चार भाग में करके डालना चाहिए। 1/4 भाग नाइट्रोजन बुआई के समय, 1/4 भाग 30-35 दिन के बाद, 1/4 भाग 60-80 दिन के उपरान्त तथा शेष नाइट्रोजन 80-110 दिन के बाद डालना चाहिए। बसंतकालीन शिशु मक्का में 1/4 भाग नाइट्रोजन बुआई के समय 1/4 भाग नाइट्रोजन बुआई के 25 दिन के बाद, 1/4 भाग 40-45 दिन के बाद तथा शेष 1/4 भाग नाइट्रोजन 60-65 दिन उपरान्त डालना चाहिए। 👉सिंचाई:- मौसम और फसल के अनुसार 2-3 सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई 20 दिन बाद दूसरी फसल के घुटने के ऊँचाई के समय व तीसरी फूल (झण्डे) आने के पहले करनी चाहिए। 👉फसल सुरक्षा:- शिशु मक्का🌽में किसी तरह की बीमारी या कीट नहीं लगता क्योंकि इसकी बाली पत्तियों में लिपटी रहने के कारण घातक कीट व बीमारी से मुक्त होता है। 👉झण्डों को तोड़ना (डिटैसलिंग):- झंडा बाहर दिखाई देते ही इसे निकाल देना चाहिए। 👉तुड़ाई:- शिशु मक्का की गुल्ली को 3-4 सेमी० , रेशमी कोपलें आने पर तोड़ लेना चाहिए। गुल्ली तुड़ाई के समय ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए। पत्तियों को हटाने से ये जल्दी खराब हो जाती है। खरीफ में प्रतिदिन एवं रबी में एक दो दिन छोड़कर गुल्ली की तुड़ाई करनी चाहिए। एकल क्रास संकर मक्का में 3-4 तुड़ाई जरूरी है। 👉उपज:- इस तरह खेती करने से शिशु मक्का की उपज 15-20 कुंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। इसके अलावा 200-250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर हरा चारा भी मिल जाता है। 👉कटाई उपरान्त प्रबन्धन:- शिशु मक्का🌽का छिलका तोड़ाई के दिन उतारकर प्लास्टिक की टोकरी, थैले या कैंटेनर में रखकर तुरन्त मण्डी में पहुँचा देना चाहिए। 👉🏻 खेती तथा खेती सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए कृषि ज्ञान को फॉलो करें।
स्रोत:- कृषि जागरण, प्रिय किसान भाइयों दी गई जानकारी उपयोगी लगी, तो इसे लाइक 👍 करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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