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बरसात के मौसम में पशुओं की देखभाल, बीमारियां एवं रोकथाम!
पशुपालनKrishi Jagran
बरसात के मौसम में पशुओं की देखभाल, बीमारियां एवं रोकथाम!
बारिश के मौसम में पशुओं को कई तरह की बीमारियां होती है. इसलिए बरसात के मौसम में पशुओं के रखरखाव पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती हैं! 1.एंथ्रेक्स - यह सभी गर्म रक्त वाले पशु विशेष रूप से मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी में होने वाला एक तीव्र, व्यापक, संक्रामक रोग है. यह रोग मिट्टी से पैदा होने वाला संक्रमण है. यह आमतौर पर बड़े जलवायु परिवर्तन के बाद होता है.यह बीमारी ज्यादातर पशुओं के दूषित चारा खाने से और दूषित पानी पीने से होती है! यह इनहेलेशन और बिलिंग मक्खियों द्वारा भी फैलती है! लक्षण - अचानक शरीर का तापमान का बढ़ जाना. भूख ना लगना. शारीरिक कमजोरी महसूस होना सांस लेने में तकलीफ होना एवं हृदय की गति की रफ्तार बढ़ जाना . गुदा, नासिका, योनी आदि जैसे प्राकृतिक छिद्रों से खून का बहाव होना आदि. नियंत्रित कैसे करें - सबसे पहले संक्रमित जानवरों को स्वस्थ जानवरों से अलग कर दे. संक्रमित क्षेत्र से स्वच्छ क्षेत्र में पशुओं की आवाजाही बंद कर दे. 10% कास्टिक सोडा या फॉर्मेलिन का इस्तेमाल करके पशुओं के रहने की जगह को पूरी तरह से कीटाणुरहित करें. 2.खुर एवं मुख संबंधी बीमारियां- खुर एवं मुख संबंधी बीमारियां बरसात के मौसम में इस तरह की बीमारियां पशुओं में आम पायी जाती है. इसमें पैर और मुख की बीमारी (एफएमडी) मवेशी, गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को होती है. यह बीमारी भारत के कई हिस्सों में वास करने वाले पशुओं को मुख्यतः होती है! कैसे नियंत्रित करें? इस बीमारी को रोकने के लिए प्रभावित जानवरों को दूसरे जानवरों के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए! पशुओं की खरीद बीमारी से प्रभाबित क्षेत्रों से नहीं होनी चाहिए! जब भी नए पशु की खरीदी करें तो उनको खरीदी के 21 दिनों तक अकेला रखना चाहिए! इलाज - बीमार पशु के रोग से प्रभावित अंग को जैसे उनके मुख एवं पैर को 1 प्रतिशत पोटैशियम परमैगनेट के घोल से धोना चाहिए! उनके मुख में बोरिक एसिड ग्लिसरीन का पेस्ट लगाना चाहिए! इसके साथ ही जानवरों को 6 महीने के अंतराल से एफएमडी के टीके लगवाने चाहिए! 3.ब्लैक क्वार्टर - यह पशुओं में होने वाला एक तीव्र संक्रामक और अत्यधिक घातक, जीवाणु रोग है. भैंस, भेड़ और बकरी भी इस बीमारी से प्रभावित होते हैं. इस बीमारी से अत्याधिक प्रभावित 6-24 उम्र के युवा पशु होते है. यह बीमारी आमतौर पर बारिश के मौसम में होती हैं! लक्षण - बुखार भूख की कमी शारीरिक कमजोरी नाड़ी और हृदय गति का तेज हो जाना सांस लेने में परेशानी होना! नियंत्रित कैसे करें - यदि रोग की प्रारंभिक अवस्था में इसको नियंत्रित किया जाये तो इसका उपचार प्रभावी होता है. उपचार और रोकथाम के लिए विभाग के नजदीकी पशुपालन अधिकारी या पशुपालन केंद्र में संपर्क करें! 4.रिंडरपेस्ट - यह जुगाली करने वाले पशुओं और सुअर में होने वाली, एक तेजी से फैलने वाली संक्रामक वायरल बीमारी है. इस बीमारी से क्रॉसब्रिड और युवा मवेशी अधिक प्रभावित होते हैं! यह बीमारी कैसे फैलती है - यह आमतौर पर सांस लेने से फैलती है! यह बीमारी ज्यादातर पशुओं के दूषित चारा खाने से और पानी पीने से फैलती है! लक्षण - जानवरों का दूध कम देना . जानवरों में भूख की कमी होना. बुखार का तीन दिनों तक रहना. पशुओं की नाक का बहना. पशुओं को पेट दर्द होना. नियंत्रण - सबसे पहले संक्रमित जानवरों को स्वस्थ जानवरों से अलग कर दे! संक्रमित क्षेत्र से स्वच्छ क्षेत्र में पशुओं की आवाजाही बंद कर दे! स्त्रोत:- कृषि जागरण 👉🏻प्रिय किसान भाइयों अपनाएं एग्रोस्टार का बेहतर कृषि ज्ञान और बने एक सफल किसान। यदि दी गई जानकारी आपको उपयोगी लगी, तो इसे लाइक 👍 करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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