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बकरी की बरबरी नस्ल का पालन कर काशीनाथ यादव बनें सफल किसान!
सफलता की कहानीAgrostar
बकरी की बरबरी नस्ल का पालन कर काशीनाथ यादव बनें सफल किसान!
👉🏻बढ़ती जनसंख्या और उन जनसंख्याओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों और कृषि योग्य भूमि को हटाकर लोगों के रहने का ठिकाना बनाया जा रहा है. जहाँ लोग आसानी से रहकर अपना जीवनयापन कर सकें! 👉🏻जीवनयापन की तलाश में उन्होंने जंगलों को काट कर घर तो बना लिया, लेकिन जीवनयापन के लिए सबसे जरुरी चीज़ को पीछे छोड़ दिया. जीवन जीने के लिए खाना जरुरी होता है, और उसके लिए फसल का उपजना और फसल उपजाने के लिए जरुरी होती है जमीनों की, जिस पर हम बड़ी आसानी से आलिशान बंगला और अपार्टमेंट का निर्माण करते आ रहे हैं! 👉🏻किसान काशीनाथ यादव ने इन्ही बातो को ध्यान में रखते हुए कुछ नया करने का सोचा! काशीनाथ यादव ने बताया कि मौजूदा वक्त में हरियाणा के एक सफल किसान में गिने जाते हैं. उन्होंने इंटीग्रेटेड फार्मिंग का तरीका अपना कर अन्य किसानों के लिए एक मिसाल बनाया है. आपको बता दें काशीनाथ यादव सिर्फ 1 एकड़ ज़मीन में डक फार्मिंग, फिश फार्मिंग, गोआट फार्मिंग, मशरुम फ़ार्मिंग कर रहे हैं. वहीं, इंटीग्रेटेड फार्मिंग जैसी नई चीज़ों को अपना कर अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं! बकरी की बरबरी नस्ल क्यों है इतनी मुनाफेदार- 👉🏻काशीनाथ यादव ने अपने सेजल फार्म में बकरी की बरबरी नस्ल का पालन कर रहे हैं. विवेक कुमार से बात-चीत के दौरान उन्होंने बरबरी नस्ल की विशेषताओं सभी किसान भाइयों से साझा करते हुए बताया कि ये नस्ल सभी बकरी पालको के लिए फायदेमंद साबित हुई है. उन्होंने बताया कि ये नस्ल साल में दो बार ब्याँति है और 2 या 3 बच्चे पैदा करती है. जो बच्चे 1 साल के होते-होते प्रजनन के योग्य या प्रजनन के लिए तैयार हो जाते हैं. किसानों को इनके खुराक के लिए भी ज्यादा सोचना नहीं पड़ता है. ये कुछ भी खा लेते हैं. ऐसे में बकरी पालको को ज्यादा चिंता नहीं होती और लागत भी कम लगती है! 👉🏻इन नस्लों में बीमारियां भी कम लगती है. काशीनाथ यादव ने बताया कि बकरियों में आम तौर पर बीमारी गीलेपन की वजह से लगता है. इस समस्या का समाधान निकालते हुए उन्होंने बकरियों के जगह को जमीन से 5 फुट ऊपर कर के बनाया है. जिस वजह से बकरियों का मालवा जमीनों पर गिरता है, जिससे गीलापन नहीं होता और बकरियों में बीमारी फैलने का खतरा कम होता है. वही वो इस मलवे का इस्तेमाल खाद बनाने में करते हैं! 👉🏻उन्होंने बताया कि बकरियों की वजह से वो अपने बगीचों में किसी तरह का केमिकल इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसकी को खाद के तौर पर खेतों में इस्तेमाल करते हैं. इस नस्ल के दूध के सेवन से कई बीमारियों से बचाव होता है. ख़ासकर अगर डेंगू बीमारी की बात करें तो उसमें बकरी का दूध औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है! 👉🏻वजह और आकारों पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया की नर बकरी का वजन तकरीबन 50 किलो तक का होता है, तो वहीं मादा बकरी का वजन तकरीबन 35 किलो तक होता है! स्त्रोत:- Agrostar 👉🏻प्रिय किसान भाइयों दी गई उपयोगी जानकारी को लाइक 👍 करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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