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पशुओं में टीकाकरण का महत्त्व (भाग-2)
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पशुओं में टीकाकरण का महत्त्व (भाग-2)
हमने पशुओं में टीकाकरण के महत्व के भाग-1 में पढ़ा कि टीकाकरण पशुओं को किस तरह से स्वस्थ रहने में मदद करता है। इस बार आइए हम जानते हैं कि किस रोग के लिए कब टीकाकरण करवाना चाहिए। खुरहा रोग : इस रोग में आईल एडजूवेंट टीका दिया जाता है।पशुओं में प्रथम टीका एक माह तथा दूसरा टीका 6 माह की उम्र पर दिया जाता है। इसके बाद प्रति वर्ष टीकाकरण कराना चाहिए। टीके की मात्रा 2 मिली प्रति पशु चमड़ी के नीचे) मार्च-अप्रैल या सितम्बर-अक्टूबर के महीने में लगवाना चाहिए। गलघोटू: बरसात के मौसम में पाया जाने वाला यह प्रमुख रोग है जो एक जीवाणु द्वारा जनित रोग है। इससे बचाव के लिए वर्षा ऋतू से पहले शुरुवात में टीकाकरण करवाएं। पशुओं में प्रथम टीका 6 माह की उम्र और इसके बाद प्रति वर्ष दिया जाता है टीके की मात्रा 2 मिली प्रति पशु (चमड़ी के नीचे) देना चाहिए। भेड़ तथा बकरियों में एक मिली प्रति पशु (चमड़ी के नीचे) देना चाहिए। लगड़ी: इस रेाग में पॉलीवेलेन्ट टीका दिया जाता है। गोवंशीय तथा भैंसवंशीय पशुओं में प्रथम टीका 6 माह की उम्र और इसके बाद प्रति वर्ष दिया जाता है। टीके की मात्रा 5 मिली प्रति पशु (चमड़ी के नीचे) मानसून से पहले देना चाहिए। ब्रूसीलोसिस: पशुओं में गर्भाधान के तीसरे चरण में गर्भपात होने का यह प्रमुख कारण है। मादा बछड़ों में इस रोग का केवल प्रथम टीका 4-6 महीने की उम्र में 2 मिली देना चाहिए। ध्यान दें गाभिन पशु को यह टीका न दें। थाईलेरियोसिस: गोवंशीय तथा भैंसवंशीय पशुओं में इसका प्रथम टीका तीन महीने या इसके ऊपर की उम्र में करते हैं। पुन: टीकाकरण में 3 मिली मात्रा (चमड़ी के नीचे) देना चाहिए। इसकी प्रतिरोधक शक्ति 3 महीने तक रहती है। नोट : कोई भी टीकाकरण पशु डॉक्टर की देखरेख में ही करें।* स्रोत : पशु संदेश
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