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पशुओं को गलाघोंटू रोग से कैसे बचाएं!
🐮 गलघोंटू पशुओं में होने वाली एक संक्रामक बीमारी है. जिसके होने से पशुओं को सही इलाज न मिलने से म्रत्यु हो जाती है. इसलिए इसे पशुओं की खतनाक बीमारियों में एक माना जाता है.
🐮 गलघोंटू बीमारी क्या है ?
▶️ बरसात के मौसम में पशुओं को कई तरह के रोगों से सामना करना पड़ता है जिसमें से गलघोटू प्रमुख रोग है.
▶️ वैज्ञानिक नाम हेमेरोजिक सेप्टीसीमिया है.
▶️ यह पाश्चुरेला मल्टीसिडा नामक जीवाणु के कारण होता है.
▶️ यह अति तीव्र गति से फैलने वाला यह जीवाणु जनित रोग, छूत वाला भी है.
▶️ इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त ‘घूरखा’, ‘घोंटुआ’, ‘अषढ़िया’, ‘डकहा’ आदि नामों से भी जाना जाता है.
🐮 यह बीमारी मुख्य रूप से गाय तथा भैंस को लगती है. बरसात के मौसम में यह रोग अधिक होता है. लक्षण के साथ ही इलाज न शुरू होने पर एक-दो दिन में पशु मर जाता है. इसमें मौत की दर 80 फीसदी से अधिक की रहती है. इस रोग के शुरुआत तेज बुखार (105-107 डिग्री) से होती है. पीड़ित पशु के मुंह से ढेर सारा लार निकलता है. गर्दन में सूजन के कारण सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज आती है और अंतत: 12-24 घंटे में मौत हो जाती है. रोग से मरे पशु को गढ्डे में दफनाएं। खुले में फेंकने से संक्रमित बैक्टीरिया पानी के साथ फैलकर रोग के प्रकोप का दायरा बढ़ा देता है.
🐮 इस रोग के प्रमुख लक्षण
▶️ पशुओं को तेज बुखार आ जाता है.
▶️पशु के गले व गर्दन में सूजन आ जाती है.
▶️ स्वसन अंग में सूजन आ जाने के कारण स्वास लेने में कठनाई होती है. जिससे स्वास में घर्र-घर्र की आवाज आती है.
▶️ तेज बुखार के साथ पेट भी फूल जाता है.
▶️ नाक और मुंह से पानी गिरने लगता है.
▶️ पशु सुस्त हो जाता है और खाना पीना बंद कर देता है.
▶️ पशु की आँखे लाल हो जाती है.
▶️ पेट दर्द होता है जिससे वह जमीन पर भी गिर जाता है.
🐮 गलघोटू का इलाज क्या है?
▶️ गलघोटू का कोई पक्का इलाज नही है.
▶️ केवल टीकाकरण ही केवल एक मात्र बचाव है.
▶️ इस बीमारी का पता लगने पर उपचार शीघ्र शुरू किया जाए तो इस जानलेवा रोग से पशुओं को बचाया जा सकता है.
▶️ इसके अलावा इसमें एंटी बायोटिक जैसे सल्फाडीमीडीन ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन और क्लोरोम फॉनीकोल एंटी बायोटिक का इस्तेमाल इस रोग से बचाव के साधन हैं.
🐮 पशुओं को गलाघोंटू रोग से कैसे बचाएं?
▶️ गलघोंटू रोकथाम का टीका अवश्य लगाना चाहिए,टीकाकरण वर्ष में दो बार कराया जाय.
▶️ बरसात शुरू होने के एक माह पूर्व पशुओं को इस बीमारी का टीका जरुर लगवा ले.
▶️ बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग बंधना चाहिए.
▶️ बीमार पशु को सार्वजनिक स्थल पर नही ले जाना चाहिए.
▶️ 6 महीने एवं उससे अधिक उम्र के पशुओं को टीका जरुर लगवाएं.
▶️ दूसरी बार पशुओं को सर्दियाँ शुरू होने से पहले टीका लगवाना चाहिए.
▶️ जिस स्थान पर संक्रमित पशु मरा हो उस स्थान को कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल या चूने के घोल से धोना चाहिये.
🐮 स्त्रोत:-AgroStar
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