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पपीते में कार्यक्षम पोषक तत्वों की योजना
गुरु ज्ञानएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
पपीते में कार्यक्षम पोषक तत्वों की योजना
केले के बाद, पुरे राज्य में सबसे अधिकतर उत्पादन देन वाली पपीता फसल उगाई जाती है। आम तौर पर, पपीते की खेती जून-जुलाई, फरवरी-मार्च और अक्टूबर-नवंबर महीनों में की जाती है। पपीते की खेती के लिए अंकुरित पौधों का वृद्धि के 40 से 45 दिनों के बाद उपयोग किया जाता है।
पपीते की खेती में, पोषक तत्वों की व्यवस्था को विशेष महत्व दिया जाता है। हमारे क्षेत्र में उपलब्ध सभी संकर किस्म 16-18 माह की अवधि के दौरान पोषक तत्वों के प्रति अच्छा वृद्धि एवम विकाश होता हैं। पपीते की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए, खाद का 1-2 बार उपयोग करने के बजाय, उर्वरकों की कुल मात्रा को विभाजित करना चाहिए और उन्हें अलग-अलग फ़सल अवस्था में देना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों के अतिरिक्त जैविक उर्वरकों का उपयोग करना भी आवश्यक है। पोषक तत्व उचित व्यवस्था के लिए, रोपण करने से पहले मिट्टी की परीक्षा आवश्यक है ताकि अधिक उपज प्राप्त हो सके। मिट्टी की गुणवत्ता के मूल्यांकन के बाद जैव उर्वरकों का उपयोग करना आवश्यक है। उचित पोषक तत्वों के कारण, मिट्टी की संरचना में सुधार, उचित जल निकास और पानी की धारण क्षमता बढ़ती है, जिसके परिणाम स्वरूप अधिक उत्पादन होता है। जैविक उर्वरक: यदि मिट्टी मध्यम गहरी है, तो भूमि की तैयारी से पहले, मिट्टी में 25-30 गाड़ियां स्थानीय उर्वरक और तालाब की मिट्टी डालनी चाहिए। यदि मिट्टी बहुत गहरी है, तो भूमि की तैयारी से पहले, मिट्टी में 15-20 गाड़ियां स्थानीय उर्वरक और तालाब की मिट्टी डालें। यदि स्थानीय उर्वरक उपलब्ध नहीं है, तो गोबर खाद या कम्पोस्ट उर्वरक का उपयोग करें। हालांकि, यह उर्वरक अच्छी तरह से विघटित होने चाहिए। इसमें कोई विघटित न होनेवाले वस्तु नहीं होनी चाहिए। रासायनिक उर्वरक: भूमि की तैयारी के समय; स्थानीय उर्वरक और तालाब की मिट्टी डालने के बाद; प्रति पौधा 50 ग्राम 10:26:26 रोपण के बाद देना चाहिए। बाद में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग इस तरह करें: रोपण के एक महीने बाद - 100 ग्राम 10:26:26 रोपण के 2 महीने बाद - 200 ग्राम M.O P. रोपण के 3 महीने बाद - 250 ग्राम D. A. P. रोपण के 4 महीने बाद - 250 ग्राम D. A. P. रोपण के 5 महीने बाद - 250 ग्राम D. A. P. रोपण के 6 महीने बाद - 250 ग्राम 19:19:19 रोपण के 7 महीने बाद - 250 ग्राम 19:19:19 रोपण के 7 महीने बाद - 200 ग्राम M.O. P. गोबर घोल: यदि आप उर्वरकों के साथ गोबर घोल का उपयोग करते हैं, तो आपको बेहतर गुणवत्ता और वजन वाले फल प्राप्त होंगे। केवल गोबर घोल के उपयोग से ही, पेड़ों को पोषक तत्व प्रदान करना संभव है। गोबर घोल देने से, जडों में उपयोगी बैक्टीरिया का मात्रा बढ़ जाती है। इससे पेड़ों को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और सल्फर आसानी से उपलब्ध होते हैं। घोल का उपयोग करके प्रति एकड़ में 80 से 85 टन उपज प्राप्त करने के उदाहरण हैं। गोबर घोल तैयार करने के लिए, 100 किग्रा गोबर को 400 लीटर पानी में डालें । 10 किग्रा फेरस सल्फेट, 10 किग्रा मैग्नीशियम सल्फेट और 10 किग्रा बोरेक्स को गोबर के साथ मिलाएॅं। इस मिश्रण को एक लकड़ी से हिलाकर इसे ठीक से मिलाएं। 24 घंटों के बाद इसे लकड़ी से फिर से हिलाएं । इस गोबर घोल का उपयोग करते समय, इसे 600 लीटर पानी के साथ फिर से मिलाएं और 24 घंटों के बाद इसका उपयोग करें। इस प्रक्रिया में, सभी फसल पोषक तत्व पानी में घुल जाते हैं। अगर इस मिश्रण का उपयोग एक महीने में प्रति लीटर प्रति पौधा कम से कम सात बार हो तो अच्छे परिणाम दिखाई देती है। ड्रिप प्रणाली के नीचे लाइन पद्धति का उपयोग करके गोबर घोल दिया जाना चाहिए। रासायनिक उर्वरक देणे के बाद गोबर घोल का उपयोग किया जाना चाहिए। पपीते की पत्तियां हरे रंग की हो जाती हैं; वे पीली नहीं दिखती। पौधे मजबूत होते हैं, फलों की संख्या और उनका वजन बढ़ता है। फल की अंदर खाली जगह घट जाती है और लुगदी बढ़ जाती है डॉ. विनायक शिंदे-पाटील, अहमदनगर संस्थापक-मुख्य प्रबंधक, कृषि समर्पण समूह, महाराष्ट्र राज्य
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