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जैविक खेती में दलहनी फसलों का महत्त्व
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जैविक खेती में दलहनी फसलों का महत्त्व
कुछ प्रकार के बैक्टीरिया, जैसे राइजोबियम, ब्रैडीहिज़ोबियम, सहजीवी फसल के साथ सहजीवी संबंध में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों (एन से एन 2) में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं। जिनका उपभोग बढ़ते पौधों द्वारा किया जाता है। अनुमान के अनुसार दालों के एक उपसमूह के साथ फलियां 72 और 350 किलो/ हेक्टेयर/ प्रति वर्ष के बीच नाइट्रोजन स्थिरीकरण कर सकती हैं। जैविक खेती में दलहनी फसलें इस तरह मदद करती हैं: 1) दालों की कुछ किस्में मिट्टी से बंधे फास्फोरस को छोड़ सकती हैं, जो पौधे के पोषण और हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 2) फसल चक्र जैविक खेती में एक प्रमुख भूमिका निभाता हैं और फसल चक्र अपनाने से भविष्य में अगली फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है। 3) अंतर फसल में दलहनी फसल एक मुख्य भूमिका निभाता है। यह मध्यवर्ती पौधों के रूप में, खरपतवार नियंत्रण और बीमारियों और कीटों से बचाने में मदद करते हैं। 4) अरहर जैसी गहरी जड़ों वाली फसल मिट्टी में गहराई तक जाकर पानी को सोखकर अंतर फसलों को उपलब्ध कराती है। 5) दलहनी फसल एक अपना अलग ही महत्त्व रखती हैं, जो उन्हें जैविक प्रणालियों में अलग-अलग तरीकों से उपयोग करने की अनुमति देती है। फसल चक्र, अंतरवर्तीय फसल, पत्तीयों की खेती और एक आच्छादन फसल के रूप में। स्रोत: www.ifoam.bio
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