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जानिए, मूंगफली की खेती के लिए किस्मों का चयन!
गुरु ज्ञानएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
जानिए, मूंगफली की खेती के लिए किस्मों का चयन!
👉 मूंगफली की तीन अलग-अलग प्रजातियां होती हैं। हल्की मिट्टी के लिये फैलने वाली और भारी मिट्टी के लिये झुमका किस्म के पौधों वाली जातियां है, जो भूमि के अनुसार बोने के काम में ली जाती है। कम फैलने वाली या फैलने वाली प्रजाति के पौधों की शाखायें फैल जाती हैं तथा मूंगफली दूर-दूर लगती है। जबकि झुमका प्रजाति की फलियां मुख्य जड़ के पास लगती है और इनका दाना गुलाबी या लाल रंग का होता है। इसकी पैदावार फैलने वाली प्रजाति से कम आती है, परन्तु ये जल्दी पकती है। 👉 उपयुक्त किस्मों की विशेषताओं का विवरण निम्न प्रकार है। एच.एन.जी.-123: 👉 वर्ष 2012 में अधिसूचित यह किस्म 125-130 दिन में पककर तैयार होती है। इस किस्म की ऊंचाई 20-25 सेमी होती है। यह कॉलर रॉट, जड़ गलन और अगेती पत्ती धब्बा बीमारी प्रति सहनशील है। इसकी औसत पैदावार 26 - 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। एच.एन.जी.-69: 👉 वर्ष 2010 में अधिसूचित यह कि 130-135 दिन में पककर तैयार होती है। यह देर से बुवाई करने हेतु सिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त है। यह 25-30 सेमी ऊंचाई एवं मध्यम फैलाव वाली किस्म है। इसकी औसत पैदावार 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। यह थ्रिप्स, तना गलन और अगेती पत्ती धब्बा बीमारी के प्रति सहनशील है। आर.जी.-510: 👉 वर्ष 2012 में अधिसूचित यह किस्म 112-138 दिन में पककर तैयार होती है। इस किस्म में तेल 49 प्रतिशत तक पाया जाता है। इसके औसत उपज 25-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। प्रताप राज मूंगफलीः 👉 वर्ष 2011 में अधिसूचित यह किस्म रेतीली एवं दोमट भूमि में बुवाई हेतु उपयुक्त है। आर.जी.-425: 👉 वर्ष 2011 में अधिसूचित यह किस्म सिंचित एवं सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह टिक्का रोग, जड़ गलन और तना गलन बीमारी के प्रति प्रतिरोधी है तथा इसकी औसत पैदावार 18-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। जी जी 20 👉 यह एक अर्द्ध विस्तारी किस्म है जो 115 से 120 दिन में पक जाती है इसकी फली में समान्यतया 2 से 3 दाने होते हैं। 100 दानों का वजन 42 ग्राम के लगभग तथा दानों में 48 प्रतिशत तेल होता है। इसकी औसतन उपज 25 से 30 क्विण्टल होती है। टी जी 39 👉 इस गुच्छे वाली किस्म को भाभा अणु अनुसंधान केन्द्र, मुंबई तथा राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर ने संयुक्त रूप से विकसित किया। इसके दाने बड़े होते हैं तथा यह किस्म लगभग 115-120 दिन में पक जाती है। इसमें तना गलन तथा पिलिया रोग भी कम होते है। इसकी औसत उपज 25-30 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है। गिरनार-2 👉 मूंगफली अनुसंधान निदेशालय जूनागढ़ (गुजरात) द्वारा विकसित यह किस्म मुख्यतः खरीफ मौसम के लिये उपयुक्त है। इस किस्म के दाने बड़े आकार के तथा सौ दानों का भार लगभग 62 ग्राम होता है। इसकी औसत उपज 29 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। इसके दानों में तेल की मात्रा 51 प्रतिशत बतायी गई है। यह किस्म रतुआ रोग के प्रति सहिष्णु बतायी गई है। एच.एन.जी. 123 👉 कृषि अनुसंधान उप केन्द्र हनुमानगढ़ द्वारा विकसित यह किस्म गुच्छानुमा प्रकार की है। इस किस्म की औसत उपज 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा दानों में तेल की मात्रा 49 प्रतिशत तक बतायी गई है। आर.जी. 425 👉 राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान दुर्गापुरा द्वारा विकसित यह किस्म विशेषतः राजस्थान राज्य के लिये खरीफ के मौसम के लिये निस्तारित की गई है। इस किस्म की औसत उपज 18-36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा दानों में तेल की मात्रा 48 प्रतिशत पायी जाती है। यह किस्म सूखे के प्रति व कॉलर गलन रोग के प्रति प्रतिरोधी बतायी गई है। आर जी 510 👉 वर्जिनियां एक प्रकार की यह किस्म विस्तारी वर्ग की है। इसके दाने मोटे व 100 दानो का वजन लगभग 65-68 ग्राम होता है इसकी औसत 28 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह किस्म कोलररोट स्टेमरोट लीफ स्पॉट आदि रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। तथा थ्रिप्स, जैसिड व ग्रासहॉपर जैसे कीड़ों के प्रति सहिष्णु भी है। स्रोत:- एग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, 👉किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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