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चने की फसल में उकठा रोग का नियंत्रण!
गुरु ज्ञानAgrostar
चने की फसल में उकठा रोग का नियंत्रण!
👉किसान मित्रों बदलते मौसम के कारण बार-बार खेतों में एक ही फसल लेने से चने की फसल में उकठा रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। चने की फसल में उकठा रोग फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम नामक फफूंद के कारण होता है। यह मिट्टी और बीज दोनों के कारण होता है, जिसकी वजह से 10 से 12 प्रतिशत तक पैदावार में कमी आती है। प्रारम्भ में पौधे की ऊपरी पत्तियां मुरझा जाती हैं, धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। नियंत्रण :- ▶ चने की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक करना चाहिए। ▶ गर्मियों में मई से जून में गहरी जुताई करने से फ्यूजेरियम फफूंद का आक्रमण कम हो जाता है। ▶ मृदा का सौर उपचार करने से भी रोग में कमी आती है। ▶ पाच टन प्रति हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। ▶ बीज को मिट्टी में 8 सेंटीमीटर की गहराई में बुवाई करना चाहिए। ▶ चना की उकठा रोग प्रतिरोधी किस्में लगाना चाहिए। ▶ उकठा रोग का प्रकोप कम करने के लिए चार से पांच साल का फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए। ▶ सरसों या अलसी के साथ चना की अन्तर फसल लगाना चाहिए। ▶ साथ ही नियंत्रण हेतु थायरम @ 1 ग्राम + कार्बनडेंज़िम @ 2 ग्राम प्रति 1 किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। ▶ खड़ी फसल में अगर ये समस्या आती है तो इसके नियंत्रण हेतु कूपर 1 @ 500 ग्राम + धानुस्टीन @ 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन से दे। या फिर कैब्रियोटोप @ 35 ग्राम प्रति पंप इस हिसाब से लेकर छिड़काव करे। 👉स्त्रोत:-Agrostar, किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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