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चना फसल में पानी व्यवस्थापन
सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
चना फसल में पानी व्यवस्थापन
रबी मौसम के दौरान उगाई जानेवाली फसल में चना एक महत्वपूर्ण फसल है। कई किसान हस्त नक्षत्र में होनेवाली बारिश का लाभ लेते हुए चने की बुवाई करते हैं और अच्छा उत्पादन पाते हैं। चने की अधिक उपज पाने के लिए, जल प्रबंधन पर यह लेख पढने से निश्चित रूप से लाभ होगा।
वर्षा आधारित क्षेत्र में मिट्टी की नमी बहुत कम हो और अगर पानी देना संभव हो, तो चने में फूल आने के समय सिंचाई करें। सिंचाई की खेती में, खेत को तैयार करते समय, दो कुंड के बीच का अंतर कम रखना चाहिए और खेत की ढलान के अनुसार लंबाई भी कम रखनी चाहिए इससे फसल को सही प्रमाण में पानी देना आसान हो जाता है। मध्यम मिट्टी में, पहले सिंचाई को 20 से 25 दिनों के बाद , दूसरी सिंचाई 45 से 50 दिन बाद और 65 से 70 दिनों के बाद तीसरा सिंचाई करनी चाहिए। भारी मिट्टी में केवल दो बार सिंचाई पर्याप्त होती है। पहली सिंचाई 30 से 35 दिनों के बाद और 60 से 65 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। चने के लिए, लगभग 25 सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है। प्रत्येक सिंचाई को उपयुक्त रूप से देना ज़रूरी है। अतिरिक्त सिंचाई से फसल खराब हो सकती है। क्षेत्र की गहराई के अनुसार, क्षेत्र में दो सिंचाई के बीच सही प्रमाण का अंतर रखना चाहिए। फसल में एक बार सिंचाई करने पर 30% की, दो बार सिंचाई में 60% और तीन बार सिंचाई करने पर उपज में दोगुनी वृद्धि होती है। स्प्रिंकलर सिंचाई – चना फसल में स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति से सिंचाई करने पर उत्पादन में अच्छी वृध्दि होते है। यह फसल सिंचाई के प्रति बहुत संवेदनशील है, और अत्यधिक पानी से फसल ख़राब हो जाती है, इसलिए स्प्रिंकलर सिंचाई चना फसल को पानी देने की एक उचित विधि है। इस पद्धति से आप जितना चाहें उतना पानी दे सकते हैं। इससे फसल में कम खरपतवार होता है। स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति के कारण सही प्रमाण में सिंचाई करने से जड़ों के गलन के रोग से होनेवाले नुकसान को रोका जा सकता है। अग्रोस्टार अग्रोनॉमी सेंटर एक्सिलेंस 2 नवंबर 17
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