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चना की वैज्ञानिक खेती कैसे करे?
⏺ चना की खेती कैसे करे?
चना एक महत्तवपूर्ण दालों वाली फसल है। यह मनुष्यों के खाने के लिए और पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इन्हे आकार, रंग और रूप के अनुसार 2 श्रेणियों में बांटा गया है: 1) देसी या भूरे चने, 2) काबुली या सफेद चने। काबुली चने की पैदावार देसी चनों से कम होती है
⏺ भूमि का चुनाव एवं तयारी :-
चने की खेती के लिए रेतली या चिकनी मिट्टी बहुत अनुकूल मानी जाती है। खारी या नमक वाली ज़मीन भी इसके लिए अच्छी नहीं मानी जाती। इसके विकास के लिए 5.5 से 7 पी एच वाली मिट्टी अच्छी होती है। हर साल एक खेत में एक ही फसल ना बोयें। अच्छा फसली चक्र अपनायें।
⏺ बीज की बुवाई :-
चना की बवाई सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में की जाती है ,वर्षा आधारित क्षेत्रों में सितंबर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक तथा सिंचित क्षेत्रों में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से नवंबर के पहले सप्ताह तक बुवाई करे । सही समय पर बिजाई करनी जरूरी है क्योंकि अगेती बिजाई से अनआवश्यक विकास का खतरा बढ़ जाता है। पिछेती बिजाई से पौधों में सूखा रोग का खतरा बढ़ जाता है, पौधे का विकास घटिया और जड़ें भी उचित ढंग से नहीं बढ़ती।
⏺ बीज की मात्रा एवं दुरी :-
बुवाई की परिस्तिथियो जैसे सिंचित ,असिंचित एवं बीज के आकार को ध्यान में रखते हुए 55-75 kg / हेक्टेयर बीज काम में लेवे I कतार से कतार की दुरी 30 cm एवं पौध से पौध की दुरी 10 cm रखे , सिंचित क्षेत्रों में 5-7 cm गहरी व बरानी क्षेत्रों में नमी को देखते हुए अधिक गहरी 7-10 cm तक बुवाई कर सकते है
⏺ बीज का उपचार –
मृदाजनित (फफूंद ) रोग जैसे जड़ गलन एवं उकठा रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 50 % WP @ 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज को उपचार करे I
⏺ बीज बोने विधि:-
चना की बुआई सामन्यतः ब्रॉडकास्टिंग / छिटकाव विधि से की जाती है , उत्तरी भारत में इसकी बिजाई पोरा ढंग से भी की जाती है।
⏺ खरपतवार नियंत्रण :-
फसल की अच्छी पैदावार के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना आवश्यक है, प्रथम निराई गुराई बुवाई के 25 से 30 दिन पर तथा आवश्यकता पड़ने पर दूसरी निराई इसके 20 दिन के बाद करे ।
⏺स्त्रोत:- AgroStar
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