सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
चना उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक
भारत में चने की खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार में की जाती है। देश के कुल चना क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत भाग तथा कुल उत्पादन का लगभग 92 प्रतिशत इन्ही राज्यों से प्राप्त होता है।
जलवायु : चना एक शुष्क एवं ठण्डे जलवायु की फसल है।पुष्पावस्था के समय वर्षा होना हानिकारक है क्योंकि वर्षा के कारण फूल परागकण एक दूसरे से चिपक जाते जिससे बीज नही बनते है। इसकी खेती के लिए 24-30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है।
मृदा : चना की खेती के लिए हल्की दोमट या दोमट मिट्टी अच्छी होती है। _x000D_
खेत की तैयारी: चना के लिए खेत की मिट्टी बहुत ज्यादा महीन या भुरभुरी बनाने की आवश्यकताा नही होती। बुआई के लिए खेत को तैयार करते समय 2-3 जुताई कर खेत को समतल कर लेना चाहिए।_x000D_
बुआई का समय: चना की बुआई समय सामान्य तौर पर 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर के बीच बुआई के लिए सर्वोत्तम रहता है। _x000D_
बीज दर: चना के बीज की मात्रा दानों के आकार, बुआई के समय विधि एवं भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है देशी छोटे दानों वाली किस्मों का 30 किलोग्राम/एकड़ मध्यम दानों वाली किस्मों का 35 किलोग्राम/एकड़ बडे दानों वाली किस्मों का 40 किलोग्राम/एकड़ की दर से बुआई करें।_x000D_
बीज उपचार: चना फसल को उकठा एवं जड़ सड़न रोग से बचाव हेतु बीज को थायरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें या ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम+ बीटावेक्स 2 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें। _x000D_
खाद एवं उर्वरक: चना की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 50 किलोग्राम डीएपी, 15 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ बुआई के समय देना चाहिए। _x000D_
सिंचाई: चना मे सामान्यतः एक या दो सिंचाई की जरूरत पड़ती है, अधिक सिंचाई से पौधों की वृद्धि अधिक व उत्पादन कम हो सकता है। प्रथम सिंचाई बुआई के लगभग 40-45 दिन बाद करें। तथा दूसरी 60-65 दिन बाद करें।_x000D_
शस्य क्रिया: तीस दिन के बाद पौधे का ऊपरी सिरा तोड़ देना चाहिए जिससे ज्यादा शाखायें निकले और अधिक फूल आए।_x000D_
स्रोत: एग्रोस्टार एग्रोनॉमी सेंटर एक्सीलेंस_x000D_
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