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गेहूं और जौ में पीला रतुआ रोग!
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गेहूं और जौ में पीला रतुआ रोग!
👉पीला रतुआ रोग गेहूं और जौ के सबसे खतरनाक और विनाशकारक रोगों में से एक है। इसे धारीदार रतुआ भी कहते हैं जो पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नामक कवक से होता है। पीला रतुआ फसल की उपज में शत प्रतिशत नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। इस बीमारी से उत्तर भारत में गेहूं की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है। 👉इस बीमारी के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं और साथ ही पोपलर व यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आती है। गेहूं के पत्तों का पीला हो जाना सिर्फ पीला रतुआ ही नहीं है अपितु फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी पीला रंग होने के कारण हो सकते है। 👉इस रोग के लक्षण प्रारम्भ में पत्तियों के उपरी सतह पर पीले रंग की धारियों के रूप में देखने को मिलते हैं जो धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाती हैं। इसलिए इसे धारीदार रतुआ भी कहते हैं और पत्तियों को छूने पर यह हल्दी जैसा पाउडर हाथों पर लग जाता है। इस रोग से संक्रमित खेतों में प्रवेश करने पर यह पीले रंग का पाउडर कपड़ों पर भी लग जाता है। 👉खेतों में इस रोग का संक्रमण एक छोटे गोलाकार क्षेत्र से शुरू होता है जो धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है। आमतौर पर इस रोग के संक्रमण होने की संभावना जनवरी माह के प्रारम्भ से रहती है जो मार्च तक चलती रहती है। लेकिन कई बार दिसम्बर माह में भी इस रोग का संक्रमण देखा गया है जिससे फसल को अधिक हानि होने की संभावना रहती है। प्रबंधन :- 👉हमेशा क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्मों की ही बुवाई करें और किसी भी एक किस्म की बीजाई अधिक क्षेत्र में न करें। उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें। पीला रतुआ रोग-लक्षणों के प्रकटन की पहचान के लिए सतत रूप से निगरानी और सर्वेक्षण करना अत्यावश्यक है। जनवरी और फरवरी माह में गेहूँ और जौ के खेतों का लगातार निरीक्षण करें और पीले रतुआ के लक्षण दिखाई देने पर मैंकोज़ेब 75 % डब्ल्यूपी को 600 से 700 ग्राम / एकड़ की दर से 200 से 250 लीटर पानी में घोल कर फसल में स्प्रै करें। 👉स्रोत :-AgroStar किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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