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 गाय की थारपारकर नस्ल का करें पालन, रोज़ाना 20 लीटर दूध देने में सक्षम!
पशुपालनKrishi Jagran
गाय की थारपारकर नस्ल का करें पालन, रोज़ाना 20 लीटर दूध देने में सक्षम!
🐄बीते चार सालों में भारत में डेयरी व्यवसाय तेजी से बढ़ा है और लगभग 6.4 फीसदी की दर से ग्रोथ हुई है, जबकि वैश्विक स्तर पर दुग्ध उत्पादन में केवल 1.7 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के मुताबिक, साल 2018-19 में देश में लगभग 187.7 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था. ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले वर्षों में भी डेयरी सेक्टर में अच्छी ग्रोथ होने की संभावनाएं नज़र आ रही है. ऐसे में देश के किसानों की आय को दोगुना करने में डेयरी बिजनेस महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं! क्यों डेयरी व्यवसाय के लिए फायदेमंद है थारपारकर? 👉🏻जोधपुर के काजरी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ (पशु चिकित्सा विज्ञान) डॉ. सुभाष कछवाहा ने कृषि जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि अपनी विशेष गुणों के कारण डेयरी व्यवसाय के लिए थारपारकर बेहद उपयोगी पशु है. दरअसल, इस नस्ल की गाय 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान में भी अधिक दूध देने की क्षमता रखती है. विपरीत परिस्थितियों में भी इसके प्रोडक्शन परफॉरमेंस कोई फर्क नहीं पड़ता है! 👉🏻जहां तापमान बढ़ने के साथ अन्य नस्लों की गायों और पशुओं का दुग्ध उत्पादन 20 से 30 फीसदी घट जाता है. वहीं यह नस्ल प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अधिक दूध देने में समर्थ है. साथ ही अन्य नस्लों की तुलना में इसकी प्रोडक्टिविटी बेहतर है. यह एक जीवनकाल में यह 15 बार बच्चों को जन्म दे सकती है, जबकि दूसरी नस्ल की गायें 5 से 10 बच्चों को जन्म दे पाती है. गर्म और शुष्क मौसम को झेलने में सक्षम इस नस्ल की उम्र 25 से 28 साल होती है! किन राज्यों में पाई जाती है थारपारकर ? 👉🏻यह नस्ल मूलतः राजस्थान प्रान्त की है, यह यहाँ के बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, जालौन और सिरोही इलाकों में पाई जाती है. दरअसल, राजस्थान का यह इलाका मरुस्थल क्षेत्र है, इसे थार मरुस्थल के नाम से जाना जाता है. यही वजह है कि गाय की नस्ल का नाम थारपारकर पड़ गया. यह राजस्थान का बड़ा क्षेत्र है. थार में पाई जाने वाली गायों को थारपारकर कहा जाता है! 👉🏻राजस्थान में इसे लोग मालाणी के नाम से भी जानते हैं. इसे राजस्थान के अलावा, देश के विभिन्न हिस्सों में पाला जा सकता है. पुणे के वृंदावन थारपारकर क्लब के चंद्रकांत भरेकर का कहना है कि वे पिछले 5 साल से थारपारकर का पालन कर रहे हैं. उनके क्लब में 100 से अधिक इस नस्ल की गायें हैं. जिसमें कई गायें एक समय में 16 से 18 लीटर दूध देती हैं! थारपारकर गाय की पहचान- 👉🏻थारपारकर देखने में सफेद और मोटी-मोटी आंखों वाली और देखने में बेहद सुंदर होती है. वैसे, देशी नस्ल की गाय देखने में सुंदर होती है, लेकिन यह नस्ल अपनी एक अलग पहचान रखती है. वैसे तो यह देखने में सफ़ेद रंग की होती है लेकिन सर्दियों में इसके शरीर पर काले रंग के बाल उग आते हैं. इसका सर मध्यम आकार का, माथा चौड़ा और ललाट उभरा हुआ होता है. इसकी कदकाठी साहीवाल और राठी नस्ल की गायों से थोड़ी ऊँची होती है. इस नस्ल की गायें स्वभाव से भोली होती हैं! गाय के दूध का लाभ- 👉🏻कई अध्ययनों में यह बात सामने आई हैं कि गाय का स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक गुणों से भरपूर होता है. इसके दूध में प्रोबायोटिक्स पाया जाता है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार है. इसके अलावा गाय के दूध में ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है, ऐसे में जो मेंटल डिसऑर्डर जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, उनके लिए गाय के दूध का सेवन करना चाहिए. इसके अलावा ओमेगा-3 फैटी एसिड दिमाग की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और दिमागी विकारों से दूर रखता है. यह कैल्शियम का अच्छा स्त्रोत होता है, जिससे हड्डियां मजबूत होती है. बच्चों के लिए गाय का दूध बेहद फायदेमंद होता है, इससे उनका बौद्धिक विकास होता है! थारपारकर को लेकर शोध - 👉🏻एक शोध में यह बात सामने आई है कि थारपारकर नस्ल की गायों में एक ख़ास जीन पाया जाता है. जिससे उन्हें ग्लोबल वार्मिंग या ज्यादा तापमान सहने में मदद मिलती है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के तहत यह दावा किया गया कि थारपारकर और साहीवाल नस्ल की देशी गायों में कुछ विशेष जीन पाए जाते हैं. जिससे उन्हें अधिक तापमान सहन करने में मदद मिल सकती है. इस शोध में यह बात भी सामने आयी कि थारपारकर गाय में बढ़ते तापमान को सहने की सबसे अधिक क्षमता होती है! स्त्रोत:- कृषि जागरण 👉🏻प्रिय किसान भाइयों अपनाएं एग्रोस्टार का बेहतर कृषि ज्ञान और बने एक सफल किसान। यदि दी गई जानकारी आपको उपयोगी लगी, तो इसे लाइक 👍 करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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