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गायों और भैंसों के लिए गौशाला कैसे बनाएं?
पशुपालनसकाल
गायों और भैंसों के लिए गौशाला कैसे बनाएं?
गौशाला का निर्माण करते समय, मैदान में अधिक सख्त और समतल क्षेत्रों का चयन करें, ताकि गौशाला में मल-मूत्र, गंदा पानी का निकास ठीक से किया जा सके। चारा के लिए उचित प्रकार के नाँद और प्रत्येक जानवरों के लिए पर्याप्त स्थान मिलें इसका ध्यान रखना चाहिए ।
गौशाला की छत उचित ऊंचाई पर होनी चाहिए और लीकेज नहीं होना चाहिए। गौशाला में काफी धूप और हवा होनी चाहिए। गौशाला के जल-निकासी, नाँद और जानवरों का खड़े होने की जगह, सूर्य प्रकाश आने के लिए गौशाला उत्तर-दक्षिण दिशा में होनी चाहिए। गौशाला की जमीन भुनी हुइ ईंट की होनी चाहिए। जमीन को नांद की तरफ से उतार दिया जाना चाहिए। जानवरों को उचित रूप से चारा खाने के लिए नांद बनानी चाहिए। नांद का पृष्ठभाग चिकना और कोनों की तरफ से गोलाकार होना चाहिए। गौशाला हवादार हो उस तरीके से दीवार का निर्माण करना चाहिए। गौशाला की छत का वजन हल्का, कठिन, मजबूत होना चाहिए। जानवरों को ताजा और स्वच्छ पानी हमेशा उपलब्ध होने के लिए एक साफ टैंक का निर्माण करना चाहिए। जानवरों का मल-मूत्र जमा करने के लिए गौशाला के कोने में गड्ढा बनाना चाहिए। गौशाला निर्माण करते समय पशुचिकित्साब की सलाह लेनी चाहिए। गौशाला के निर्माण की विधि: 1) पूंछ से पूंछ विधि इस पद्धति में, जानवरों को धोने और दूध निकालने के लिए दो पंक्तियों के बीच का स्थान अधिक उपयोगी होता है। जानवरों का मुंह बाहर रहने से संक्रामक रोग होने की संभावना कम रहती है, और बाहर से ताज़ी हवा भी मिलते है। दूध लेने वालों की देखभाल करना आसान है। जानवरों को आसानी से पहचाना जा सकता है ब) मुंह से मुंह विधि: मुंह के तरफ मुंह करके बंधा हुआ जानवरों के योग्य रूप से निरिक्षण कर सकते हैं। गौशाला के दोनों बाजुओं में खली जगह रहने के कारण अधिक सूर्यप्रकाश मिल जाते है। जानवरों को चारा देना असान हो जाता है। रोग प्रसार का प्रमाण कम हो जाता है। गोसंशोधन और सुधार योजना, महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय, राहुरी संदर्भ-सकाळ
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