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खुशखबरी! कोरोना के असर से किसानों की आमदनी बचाने के 6 तरीके!
नई दिल्ली. COVID-19 महामारी के कारण पूरी दुनिया में खाद्य सुरक्षा के संकट को लेकर गंभीर चिंता पैदा हुई है। महत्वपूर्ण यह है कि कृषि उत्पादन पर कोरोना वायरस का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, जिसके कारण FAO के मुताबिक अगले 10 वर्षों में सप्लाई मांग से अधिक रहने की संभावना है। नतीजतन, पिछले करीब दशक भर से कमोडिटी बाजार में चल रही मंदी के अगले एक दशक में भी जारी रहने की संभावना है।
किसानों को बेहतर आमदनी की उम्मीद
इसे भारत के संदर्भ में देखा जाए तो केंद्र द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2019-20 के दौरान जहां देश में कुल 94.2 लाख हेक्टेयर जमीन पर खरीफ की बुवाई की गई, वहीं चालू साल के दौरान यह क्षेत्रफल बढ़कर 1.313 करोड़ हेक्टेयर तक पहुंच गया। लगभग 40% ज्यादा क्षेत्रफल पर बुवाई से अगले वर्ष खरीफ फसलों के रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना मजबूत है।
ऐसे में देश की सरकार के सामने किसानों की आमदनी को बचाने और बढ़ाने के लिए क्या विकल्प हैं? सरकार 6 मोर्चों पर काम कर वास्तव में उत्पादन में आने वाली इस बढ़ोतरी के दुष्प्रभावों से किसानों को बचा सकती हैः-
1. निर्यात पर जोर
OECD-FAO एग्रीकल्चर आउटलुक 2020-29 में कहा गया है कि आने वाले वर्षों में संपन्न देशों के लोग पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के मद्देनजर प्रोटीन के लिए पशु उत्पादों से अलग हट कर वैकल्पिक खाद्य स्रोतों की तरफ रुझान करेंगे। अमेरिका और यूरोपीय देश भारतीय दालों के लिए संभावित बाजार साबित हो सकते हैं। अन्य कमोडिटी में भी सरकार को चाहिए कि निर्यात बढ़ाने पर खास ध्यान दिया जाए। ऐसा कर एक ओर तो कमोडिटी की कीमतें गिरने से रोक कर किसानों को नुकसान से बचाया जा सकेगा।
2. फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा
सरकार फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देकर कृषि उपज के जरूरत से ज्यादा सरप्लस होने पर अंकुश लगा सकती है। इससे जहां एक ओर किसानों को उनकी उपज का बेहतर भाव मिलेगा, वहीं कमोडिटी की मांग में आने वाली कमी को भी संतुलित किया जा सकेगा।
3. खेती की लागत कम करने पर जोर
किसानों की लागत कम करने में तकनीक की भूमिका अहम हो सकती है। तकनीक के साथ कस्टम हायरिंग सेंटर्स को बढ़ावा देकर भी सरकार खेती की लागत को कम कर सकती है।
4. कृषि सुधारों का क्रियान्वयन
सरकार को एग्री प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) कानून में हुए बदलावों को तुरंत प्रभावी तरीके से लागू करने करना चाहिए ताकि किसान और किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) मंडियों से बाहर सही ग्राहकों को खोज कर बेहतर भाव हासिल कर सकें। इसके साथ ही कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर घोषित सुधारों को भी प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
5. ऑनलाइन मार्केटिंग
केंद्र सरकार ने पहले ही ई-नाम को अपना फ्लैगशिप कार्यक्रम बना रखा है और लगभग 1000 मंडियां इससे जुड़ चुकी हैं। लेकिन शुरू होने के 4 साल बाद भी कई नीतिगत और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी कमियों के कारण ई-नाम अपेक्षित स्तर की सफलता हासिल नहीं कर सका है।
6. MSP खरीद का दायरा बढ़ाना
कोरोना के कारण लॉकडाउन के दौरान जब किसानों के पास अपनी फसलों को बेचने के विकल्प बिल्कुल सीमित थे और मांग की कमी के कारण फसलों का बाजार भाव उनकी सामान्य कीमत से भी काफी नीचे जा रहा था, उस समय केंद्र और राज्यों ने मिलकर रबी की फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदने का जो सफलतापूर्वक कार्यक्रम चलाया, उसका परिणाम यह हुआ कि गेहूं, चना और सरसों जैसी फसलों की कीमत एक सीमा के नीचे नहीं गईं।
स्रोत:- न्यूज़ 18, 20 मई 2020,
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