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कृषि लागत कम करने की मुहिम, माइक्रो इरीगेशन में कवर हुआ 60.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र!
कृषि वार्ताTV 9 Hindi
कृषि लागत कम करने की मुहिम, माइक्रो इरीगेशन में कवर हुआ 60.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र!
👉🏻 मोदी सरकार सिंचाई के तौर-तरीके बदलने की मुहिम में जुट गई है. इसके लिए सूक्ष्म सिंचाई यानी माइक्रो इरीगेशन (Micro irrigation) पर जोर दिया जा रहा है. ताकि कृषि लागत कम हो और उत्पादकता में वृद्धि हो सके. इसके तहत पिछले सात साल में 60.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर कर लिया गया है. सरकार ने अगले पांच साल में सिंचाई की इस पद्धति के तहत 100 लाख हेक्टेयर भूमि कवर करने का लक्ष्य रखा है. आगामी वित्त वर्ष में कुल 20 लाख हेक्टेयर जमीन इसके तहत कवर की जाएगी. 👉🏻 केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की प्रति बूंद अधिक फसल (Per Drop More Crop) मुहिम के तहत वर्ष 2014-15 से 2020-21 तक राज्यों को 15,511.59 करोड़ की केंद्रीय सहायता जारी की गई. वर्ष 2018-19 के दौरान नाबार्ड के साथ 5000 करोड़ की प्रारंभिक पूंजी के साथ माइक्रो इरीगेशन फंड (MIF) बनाया गया है. इसे प्रमोट करने के लिए 2021-22 के बजट में इसका फंड बढ़ाकर 10,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. नई सिंचाई पद्धति पर क्यों है जोर? 👉🏻 माइक्रो इरीगेशन के तीन प्रमुख लाभ हैं, जिसकी वजह से मोदी सरकार का इस पर जोर है. पहला इस पद्धति में पारंपरिक के मुकाबले काफी कम पानी लगता है. दूसरा, ऊर्जा व खादों पर खर्च कम हो जाता है और तीसरा उत्पादकता में इजाफा हो जाता है. सरकार खासतौर पर पानी की कमी को देखते हुए अब सिंचाई का पैटर्न बदलना चाहती है. कितनी होगी बचत 👉🏻 माइक्रो इरिगेशन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से 48 फीसदी तक पानी की बचत (Save Water) का दावा विशेषज्ञ करते हैं. ऊर्जा की खपत में भी कमी आएगी. इस प्रणाली का ढांचा एक बार तैयार हो गया तो इसमें मजदूरी घट जाएगी. नई पद्धति से ही पानी के साथ फर्टिलाइजर का घोल मिला देने से 20 फीसदी तक की बचत होगी. उत्पादन में इजाफा होगा. सूक्ष्म सिंचाई में ड्रिप इरिगेशन, माइक्रो स्प्रिंकल (सूक्ष्म फव्वारा), लोकलाइज इरिगेशन (पौधे की जड़ को पानी देना) आदि तरीके हैं. पारंपरिक सिंचाई से नुकसान 👉🏻 कृषि क्षेत्र में 85 से 90 फीसदी तक पानी की खपत होती है, जबकि देश के कई हिस्सों में पानी की बहुत किल्लत है. खेत में पानी भर देने (flood irrigation) वाली पद्धति से पानी और पैसा दोनों का खर्च ज्यादा होता है. यही नहीं इससे मिट्टी में डाली गई खाद भी नीचे चली जाती है. इसलिए किसानों का नुकसान होता है और उत्पादकता कम हो जाती है. 👉🏻 खेती तथा खेती सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए कृषि ज्ञान को फॉलो करें। फॉलो करने के लिए अभी ulink://android.agrostar.in/publicProfile?userId=558020 क्लिक करें। स्रोत:- TV 9 Hindi, 👉🏻 प्रिय किसान भाइयों अपनाएं एग्रोस्टार का बेहतर कृषि ज्ञान और बने एक सफल किसान। यदि दी गई जानकारी आपको उपयोगी लगी, तो इसे लाइक👍🏻करें एवं अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें धन्यवाद!
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