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कभी कॉलेज नहीं गया यह युवक, पर बना दिए 35 तरह के कृषि यन्त्र!
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कभी कॉलेज नहीं गया यह युवक, पर बना दिए 35 तरह के कृषि यन्त्र!
👉🏻वह कहते हैं न, आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। ऐसा ही कुछ गुजरात के हिरेन पांचाल (Hiren Panchal) के साथ भी हुआ। मूल रूप से गुजरात के राजपीपला शहर के रहने वाले हिरेन पंचाल धरमपुर में रहकर खेती और बागवानी से जुड़े कई तरह के टूल्स (Farming Tools) बना रहे हैं। 👉🏻हिरेन ने खेती और बागवानी के काम को आसान बनाने के लिए तक़रीबन 35 तरह के छोटे-छोटे हैंडटूल्स बनाए हैं। केवल तीन साल में उनके बनाए उपकरण इतने लोकप्रिय हो गए कि देश ही नहीं, विदेश से भी लोग उनके टूल्स (Farming Tools) मंगवा रहे हैं। 👉🏻द बेटर इंडिया से बात करते हुए हिरेन कहते हैं, “छोटे किसान अक्सर बड़ी मशीन नहीं खरीद पाते और न ही बड़ी मशीन उनके छोटे खेत के लिए कारगर होती हैं। ऐसे में, सस्ते और हल्के औजार उनके बड़े काम आ सकते हैं।” बचपन से किताबी नहीं प्रायोगिक ज्ञान में थी रूचि:- 👉🏻हिरेन कभी भी कॉलेज या स्कूल नहीं गए हैं। वह होम स्कूलिंग में ज्यादा यकीन रखते हैं। 16 साल की उम्र में, वह पुणे के विज्ञान आश्रम गए थे। वहां उन्हें कई तरह की प्रैक्टिकल ट्रैनिंग और रोजमर्रा के जीवन में उपयोगी चीजों का प्रैक्टिकल ज्ञान दिया गया। कैसे आया Farming Tools बनाने का आईडिया:- 👉🏻हिरेन जब खुद खेती कर रहे थे तब उन्होंने भी कई तरह की परेशानियों का सामना किया। खेती में दिक्क्तों को दूर करने के लिए उन्होंने विज्ञान आश्रम की अपनी शिक्षा का प्रयोग करके, अपने इस्तेमाल के लिए टूल्स (Farming Tools) बनाना शुरू किया। 👉🏻हिरेन कहते हैं, “वहां की पथरीली जमीन को समतल बनाने से लेकर घास की कटाई जैसे काम करने के लिए मैंने इन टूल्स (Farming Tools) को बनाना शुरू किया। जिसके बाद आस-पास के कई किसान मुझसे वह टूल्स मांगने आते थे। कई महिला किसान जो खेत में काम करती थीं, उनके लिए यह टूल्स काफी उपयोगी थे। तभी मुझे और लोगों के लिए भी टूल्स बनाने का ख्याल आया।” मिट्टीधन की शुरुआत:- 👉🏻तक़रीबन तीन साल पहले उन्होंने बिल्कुल कम पूंजी और स्थानीय कारीगरों की मदद से धरमपुर (गुजरात) में एक स्टार्टअप की शुरुआत की। उन्होंने अपने इस स्टार्टअप को ‘मिट्टीधन’ नाम दिया। 👉🏻हिरेन कहते हैं, “मेरा उद्देश्य कभी भी बड़ा बिज़नेस करना नहीं है। मैं ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहता हूं। इसलिए मैं इसे बिज़नेस नहीं, बल्कि सोशल एंटरप्राइज ही कहता हूं। लेकिन यह भी सच है कि एक सस्टेनेबल काम करने के लिए आपको पैसों की जरूरत भी पड़ती है।” 👉🏻धरमपुर जैसे आदिवासी इलाके में काम करने के लिए, उन्हें एक स्थानीय दोस्त ने अपनी जगह इस्तेमाल करने को दी है। हिरेन कहते हैं, “जब मैंने अपने दोस्त परेश रावल को बताया कि मैं इस तरह के औजार, छोटे किसानों के लिए बनाना चाहता हूं, तब उन्होंने मुझे मुफ्त में अपनी जगह इस्तेमाल करने को दे दी।” 👉🏻उन्हें सोशल मीडिया के जरिए विदेशों से भी ऑर्डर्स मिलते रहते हैं। उनके पास खेतों में निराई के लिए 4,6 और 7.5 इंच डी-वीडर, नर्सरी, बगीचे के लिए कुदाल, निराई के लिए पुश एंड पुल वीडर, बेकार घास काटने वाला स्लेशर, छोटे खरपतवार हटाने के लिए रैक वीडर, वीड 2- इन-1 वीडर और फावड़ा वीडर के साथ-साथ रैक, जमीन से मलबा हटाने के लिए हल, कुल्हाड़ी नारियल का छिलका निकालने के लिए मशीन, वहीं /नींबू/चीकू/आम आदि पेड़ से उतरने के लिए पकड़ मशीन जैसे खेती और बागवानी के करीबन 35 टूल्स (Farming Tools) हैं। 👉🏻इनकी अधिकतम कीमत केवल 200 रुपये ही है। उनके इन प्रोडक्ट्स के ग्राहक, छोटे किसान हैं, इसलिए कीमत भी यही सोच कर रखी गई है। स्रोत:- The Better India, 👉🏻किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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