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कपास की फसल में माहू का जीवन चक्र!
आर्थिक महत्व:- माहू कीट के शिशु एवं प्रौढ़ कपास के पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नई फलियों से रस चूसकर क्षति पहुंचते हैं। एवं पत्तियों पर मधुस्राव भी करते है। इस मधुस्राव पर काली फफूंदी का प्रकोप हो जाता है। इस कीट का प्रकोप वर्ष भर बना रहता है। इस कीट के द्वारा 50% तक की हानि होती है। जीवन चक्र:- शिशु:- शुरुआत में यह कीट पत्तियों के निचली तरफ दिखाई पड़ते हैं। जहां पर बैढ़कर पत्तियों से रस चूसते हैं। इसमें मादा कीटों की संख्या अधिक होती है। मादा कीट सीधे शिशुओं को जन्म देती हैं। शिशु 3-6 दिन में प्रौढ़ बनते हैं। प्रौढ़:- प्रौढ़ कीट पंखयुक्त एवं पंखहीन होते हैं। इनका रंग हरा एवं हल्का स्लेटी होता है। नियंत्रण:- इस कीट का प्रकोप अधिक होने पर ऑक्सिडेमेटन - मिथाइल 25% ईसी @1000 मिली 500-1000 लीटर पानी, थायामिथोक्साम 25 डब्ल्यूजी @50-100 ग्राम 500-1000 लीटर पानी, एसिटामिप्रिड 1.1% + साइपरमेथ्रिन 5.5% ईसी @175-200 मिली प्रति 500 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। नोट :- विभिन्न फसलों के अनुसार दवाइयों की मात्रा अलग अलग रहती है।
स्रोत:- कोपर्ट बायोलॉजिकल सिस्टम_x000D_ प्रिय किसान भाइयों दी गई जानकारी यदि आपको उपयोगी लगे तो, लाइक करें और अपने सभी किसान मित्रों के साथ शेयर करें।
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