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आलू की खेती की वैज्ञानिक पद्धति
सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
आलू की खेती की वैज्ञानिक पद्धति
आलू एक ऐसी फसल है जिससे प्रति इकाई क्षेत्रफल में अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक उत्पादन मिलता है तथा प्रति हेक्टर आय भी अधिक मिलती है। चावल, गेहूं, गन्ना के बाद क्षेत्रफल में आलू का चौथा स्थान है।
जलवायु _x000D_ आलू समशीतोष्ण जलवायु की फसल है। सामान्य रूप से अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तथा रात का तापमान 4-15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापक्रम होने पर आलू की फसल में कन्द बनना बिलकुल बन्द हो जाता है। _x000D_ _x000D_ भूमि एवं प्रबन्ध _x000D_ आलू की फसल विभिन्न प्रकार की भूमि, जिसका पी.एच. मान 6 से 8 के बीच हो, उगाई जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट तथा दोमट उचित जल निकास की भूमि उपयुक्त होती है। 3-4 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें। वर्तमान में रोटावेटर से भी खेत की तैयारी जल्द और अच्छी हो जाती है।_x000D_ _x000D_ बुआई का समय _x000D_ सामान्यतः अगेती फसल की बुआई मध्य सितम्बर से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक, मुख्य फसल की बुआई मध्य अक्टूबर के बाद हो जानी चाहिए।_x000D_ _x000D_ नवीनतम किस्में_x000D_ कुफरी चिप्सोना -1, कुफरी चिप्सोना -2, कुफरी गिरिराज, कुफरी आनंद _x000D_ मिट्टी परीक्षण के अनुसार अथवा 25 किलो जिंक सल्फेट एवं 50 किवो फेरस सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई से पहले कम वाले क्षेत्रों में प्रयोग करना चाहिए। हरी खाद का प्रयोग न किया हो तो 15-30 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद प्रयोग करने से जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है।_x000D_ _x000D_ बीज की बुआई _x000D_ यदि भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो, पलेवा करना आवश्यक होता है। बीज आकार के आलू कन्दों को कूडों में बोया जाता है तथा मिट्टी से ढककर हल्की मेड़ें बना दी जाती है। आलू की बुआई पोटेटो प्लान्टर से किये जाने से समय, श्रम व धन की बचत की जा सकती है।_x000D_ _x000D_ _x000D_ सिंचाई प्रबन्ध _x000D_ पौधों की उचित वृद्धि एवं विकास तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है। यदि आलू की बुआई से पूर्व पलेवा नहीं किया गया है तो बुआई के 2-3 दिन के अन्दर हल्की सिंचाई करना अनिवार्य है।_x000D_ _x000D_ _x000D_ स्रोत: एग्रोस्टार एग्रोनॉमी सेंटर एक्सीलेंस_x000D_
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