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अब खेत मे फसल होगी डबल
कृषि वार्ताAgrostar
अब खेत मे फसल होगी डबल
👉भारत में फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए यूरिया का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है. क्योंकि इससे फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है जो पौधों के विकास के लिए बेहद जरूरी है. लेकिन यूरिया जैव उर्वरक नहीं है, जिसके कारण प्राकृतिक और जैविक खेती का मकसद पूरा नहीं हो पाता. हालांकि अब सामाधान के रूप में किसान ढैंचा की खेती पर जोर दे रहे हैं क्योंकि ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जो नाइट्रोजन का बेहतरीन स्रोत है. ढैंचा के इस्तेमाल के बाद खेत में अलग से यूरिया की जरूरत नहीं पड़ती और खरपतवार जैसी समस्याएं भी जड़ से खत्म हो जाती हैं. 👉उपयुक्त जलवायु- ढैंचा की अच्छी पैदावार के लिए इसे खरीफ की फसल के साथ उगाते हैं. पौधों पर गर्म और ठंडी जलवायु का कोई खास असर नहीं होता लेकिन पौधों को सामान्य बारिश की जरूरत होती है. 👉मिट्टी का चयन- ढैंचा के पौधों के लिए काली चिकनी मिट्टी अच्छी मानी जाती है. हरी खाद का उत्पादन लेने के लिए किसी भी तरह की भूमि में उगा सकते हैं. 👉फसल लगाने का समय- हरी खाद की फसल लेने के लिए ढैंचा के बीजों को अप्रैल में लगाते हैं और पैदावार लेने के लिए बीजों को खरीफ की फसल के समय बारिश में लगाते हैं. एक एकड़ के खेत में करीब 10 से 15 किलो बीज की जरूरत होती है. 👉सिंचाई- पौधों को सामान्य सिंचाई की जरूरत होती है. पैदावार तैयार होने तक पौधों की 4-5 बार सिंचाई करें, क्योंकि ढैंचा के बीजों को नम भूमि में लगाते हैं इसलिए पहली सिंचाई करीब 20 दिन बाद करे फिर एक महीने के अंतराल में दूसरी और तीसरी बार सिंचाई करना चाहिए. 👉स्रोत:-AgroStar किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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