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अधिक लाभ के लिए किसान इस तरह करें बेबीकॉर्न की खेती!
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अधिक लाभ के लिए किसान इस तरह करें बेबीकॉर्न की खेती!
👉नमस्कार किसान भाइयों स्वागत है आप का एग्रोस्टार के कृषि लेख में किसान भाइयों कृषि क्षेत्र में किसान नई फसलों एवं नई किस्मों की वैज्ञानिक तरीके से खेती कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं | कृषि के क्षेत्र में फसलों का चयन बाजार मांग के आनुसार करना चाहिए, जिससे किसानों को उचित भाव मिल सकें | आज के समय में लोगों के बीच स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के साथ बेबीकॉर्न की खपत में निरंतर वृद्धि हो रही है | इस वजह से इस फसल का बाजार मूल्य भी अधिक है एवं इससे बहुत से उत्पाद बनाए जाते हैं | 👉बेबीकॉर्न मक्का की ही एक प्रजाति है, लेकिन इसकी उपयोगिता के आधार पर बेबीकार्न नाम दिया गया है | बाजार में मांग के अनुसार किसानों के बीच खेती की प्रतिस्पर्धा बनी हुई है | पौधे का अनिषेचित भुट्टा होता और रेशमी बाल (सिल्क) निकलने के 2–3 दिनों के अंदर तोड़कर उपयोग में लाया जाता है | यह काफी मुलायम होता है | समय बढने के साथ इसकी गुणवत्ता में गिरावट आती जाती है | 👉बेबीकॉर्न से होने वाले लाभ यह एक स्वादिष्ट व पौष्टिक आहार है, पत्तियों में लिपटा होने के कारण यह कीटनाशक दवाइयों के प्रभाव से मुक्त होता है | इस कारण यह स्वास्थ्य की द्रष्टि से एकदम सुरक्षित है | बेबीकॉर्न का उपयोग सलाद, सूप, सब्जी, अचार एवं कैंडी, पकौड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी, लड्डू, हलवा, खीर इत्यादि के रूप में होता है | बेबीकॉर्न में फास्फोरस भरपूर मात्रा उपलब्ध होता है | इसके लिए अतिरिक्त इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्सियम, लौह व विटामिन भी उपलब्ध हैं | कोलेस्ट्रोल रहित होने एवं रेशों की अधिकता के कारण यह एक निम्न कैलोरीयुक्त आहार है | यह ह्रदय रोगियों के लिए काफी लाभदायक है | 👉मृदा का चयन एवं खेती की तैयारी बेबीकॉर्न की खेती के लिए पर्याप्त जीवांशयुक्त दोमट मृदा अच्छी होती है | पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा शेष जुताई देसी हल/रोटावेटर या कल्टीवेटर द्वारा करके पाटा लगाकर खेत को तैयारी कर लेना चाहिए | बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी के साथ–साथ खेत पलेवा करके तैयार करना चाहिए। 👉बेबीकॉर्न की उन्नत किस्में मक्के की बेबीकार्न की खेती के लिए कम समय में पकने वाली, मध्यम ऊँचाई की एकल क्रांस संकर किस्में अधिक उपयुक्त होती है | बेबीकार्न की किस्में इस प्रकार है :- किस्म गुल्ली का रंग जीरा निकलने की अवधि (दिन) उत्पादन क्षमता (क्विंटल/हैक्टेयर) छिलका सहित छिलका रहित आजाद कमल क्रीमी सफेद गुल्ली जैसा होता है. 👉उत्तर भारत में बेबीकार्न फरवरी से नवंबर के मध्य कभी भी बोया जा सकता है | बुवाई मेड़ों के दक्षिणी भाग में करनी चाहिए तथा मेड़ से मेड़ एवं पौधे से पौधे की दुरी 60 से.मी. × 15 से.मी. रखनी चाहिए | विभिन्न किस्मों के बीजों के आकार के अनुसार प्रति हैक्टेयर 22–25 किलोग्राम बीज दर उपयुक्त होती है | उर्वरक प्रबंधन अच्छी उपज के लिए उर्वरक का सही उपयोग होना चाहिए | 👉खरपतवार नियंत्रण:- पहली निराई–गुडाई बुआई के 15–20 दिनों बाद तथा दूसरी 30 से 35 दिनों बाद अवश्य करनी चाहिए | इससे जड़ों में हवा का संचार होता है और ये दूर तक फैलकर भोज्य पदार्थ एकत्र करके पौधों को देती हैं | सीमाजीन 105 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर को 500–600 लीटर पानी में घोलकर बीज के अंकुरण के पूर्व खेत में छिडकाव करने से खरपतवार नहीं जमते और फसल तेजी से बढती है | बेबीकॉर्न की तुड़ाई का सही समय मक्के की बेबीकार्न की गुल्ली को 3–4 से.मी. सिल्क (जीरा) आने पर तोड़ लेना चाहिए | 👉गुल्ली तुडाई के समय ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए | पत्तियों को हटाने से ये जल्दी खराब हो जाती है | रबी में एक दो दिन छोड़कर गुल्ली की तुडाई करनी चाहिए | एकल क्रांस संकर मक्का में 3– 4 तुड़ाई जरुरी है | कितनी उपज प्राप्त होगी इस तरह खेती करने से बेबीकॉर्न की छिलकारहित उपज 15–20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है | इसके अलावा 200–250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हरा चारा भी मिल जाता है |बेबीकार्न का छिलका तुडाई के दिन उतारकर प्लास्टिक की टोकरी, थैली या कंटेनर में रखकर तुरंत मंडी में पहुंचा देना चाहिए | 👉स्रोत:- Agrostar किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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