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जीरे की आधुनिक पद्धति से खेती
सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
जीरे की आधुनिक पद्धति से खेती
जीरे का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है। जीरे की खेती अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा लाभदायक है। लेकिन जीरे की खेती में सही तरीके से मौसम, बीज, खाद तथा सिंचाई की जानकारी नहीं रहने पर नुकसान भी उठाना पड़ता है। उपयुक्त मिट्टी तथा जलवायु : जीरे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन रेतीली चिकनी बलुई या दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। जीरे की बुवाई के समय का तापमान 24-28 सेल्सियस होना चाहिए। अधिक तापमान से अंकुरण में समस्या आने की संभावना होती है। खेत की तैयारी : जीरे की अच्छी पैदावार लेने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से, एक गहरी जुताई तथा देशी हल या हैरो से दो या तीन हल्की जुताई, करके खेत को समतल कर लेना चाहिए। बुवाई का समय : जीरे की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक उपयुक्त रहता है।
खाद एवं उर्वरक : जीरे के खेत में प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन गोबर खाद 30 किलोग्राम यूरिया, 20 किलोग्राम फॉस्फोरस (सिंगल सुपर खाद) और सल्फर 90%, 10 -12 किलो ग्राम का प्रयोग करना चाहिए। बीज दर एवं बीजोपचार : जीरे की बुवाई के लिए खेत में 12-15 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। जीरे को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीजों को वीटावैक्स द्वारा 2.5-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। सिंचाई : सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। याद रहे सिंचाई हल्की होनी चाहिए, दूसरी सिंचाई बुवाई के 7 दिन बाद करें। जीरे की पुष्पावस्था पर सिंचाई नहीं करना चाहिए। रोग एवं कीट : उखठा रोग, झुलसा रोग (ब्लाइट), छाछया रोग (पाउडरी मिल्डयू), माहू, हरा तैला, थ्रिप्स आदि। समय-समय पर फसल का निरीक्षण करके रोग एवं कीटों को रोका जा सकता है। फसल कटाई : जीरे की किस्म, स्थानीय मौसम, सिंचाई व्यवस्था आदि के अनुसार फसल 90 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। स्रोत : एग्रोस्टार एग्रोनॉमी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगे, तो फोटो के नीचे दिए पीले अंगूठे के निशान पर क्लिक करें और नीचे दिए विकल्पों के माध्यम से अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा करें।
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