सलाहकार लेखएग्रोस्टार एग्रोनोमी सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस
सरसों की खेती के लिए अच्छी भूमि का करें चयन
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की सरसों उगाई जाती है। जैसे रायडा -सरसों, पीली सरसों, भूरी सरसों और तारामीरा आदि प्रमुख होती है। भारत में सरसों फसल की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्न है, जैसे- खेत की तैयारी, क्षेत्र विशेष की उपयुक्त किस्मों का चयन, संतुलित उर्वरकों का प्रयोग, पौधों के रोग, कीट एवं खरपतवारों की पर्याप्त रोकथाम, कोहरा एवं पाला का प्रकोप, उचित समय पर फसल की कटाई आदि प्रमुख है |
मृदा का चयन और सुधार
सरसों फसल समतल और अच्छे जल निकास वाली दोमट से बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है। अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पी एच मान 6-7 होना चाहिए। अत्यधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती हेतु अच्छी नहीं है।
बारानी (असिंचित) : बारानी क्षेत्रों में भूमि तैयारी के समय नमी संरक्षण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आखिरी जुताई के समय 5 से 10 टन गोबर की खाद का प्रयोग लाभकारी रहता है, साथ में 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 से 35 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटाश और यदि कमी हो तो 20 किलोग्राम सल्फर 90% का प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है। उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना लाभकारी होता है |
सिंचित स्थिति : सिंचित क्षेत्रों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन से चार जुताई हेरो हल से करनी चाहिए। सिचिंत क्षेत्र में जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए। आखरी जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग, साथ मे 55 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश और यदि कमी हो तो 20 किलोग्राम सल्फर का प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है।
उत्पादन बढ़ाने के प्रमुख बिंदु
1. क्षेत्र और मिट्टी के अनुकूल किस्म का चयन करें।
2. उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें।
3. देशी किस्मों को छोड़कर संकर किस्में लगाने से उत्पादकता में 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की जा सकती है |
स्रोत: एग्रोस्टार एग्रोनॉमी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस
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