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दुधारू पशुओं में गलाघोंटू और थनैला रोग और उनके समाधान!
👉पशुधन के लिए साफ-सुथरी जगह, सन्तुलित खान-पान तथा उचित देख भाल करने की जरुरत होती है। इससे उन्हें रोगग्रस्त होने का खतरा काफी हद तक टल जाता है। रोगों का प्रकोप कमजोर मवेशियों पर ज्यादा होता है।
गलाघोंटू रोग के लक्षण:-
▶ यह बीमारी गाय और भैंसों को ज्यादा परेशान करती है। और भेड़ तथा सुअरों को भी यह बीमारी लग जाती है।
▶ इसका प्रकोप ज्यादातर बरसात में होता है। इसके कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पशु सुस्त हो जाते हैं।
▶ रोगी पशु का गला सूज जाता है जिससे खाना निगलने में कठिनाई होती है, जिस कारण पशु खाना–पीना छोड़ देते हैं।
▶ पशु को कब्जियत और उसके बाद पतला दस्त भी होने लगता है।
▶ बीमार पशु 6 से 24 घंटे के भीतर मर जाते हैं।
नियंत्रण:-
▶ अपने पशुओं को प्रति वर्ष वर्षा ऋतु से पूर्व इस रोग का टीका पशुओं को अवश्य लगवा लेना चाहिए। बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
▶ पशु आवास को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर सलाह लेवें।
▶ इससे बचाव के लिए निरोधक टीका मवेशियों को लगवाना चाहिए। इसके मुफ्त टीकाकरण की व्यवस्था विभाग द्वारा की जाती है।
थनैला रोग के लक्षण:-
▶ दुधारू पशुओं के थन में सूजन, कड़ापन और दर्द इस रोग के मुख्य लक्षण होते हैं।
▶ थनों से फटा हुआ, थक्के युक्त या दही की तरह जमा हुआ दूध निकलता हैं।
▶ कभी कभी दूध के साथ रक्त भी निकलता है। दूध गंदला और पीले.भूरे रंग का हो जाता हैं। दूध से दुर्गंध आने लगती है। थनों में गांठे पड़ जाती एवं आकर में छोटे भी हो सकते हैं।
▶ दूध की मात्रा कम हो जाती है। इस रोग में पशु को बुखार आता है और वह खाना पीना कम कर देता है।
नियंत्रण:-
▶ पशुओं के आवास को साफ एवं स्वच्छ रखें। फिनाइल से सफाई करें और दूध दुहने से पहले हाथ साफ करें और साफ बर्तन में ही दूध निकालें।
▶ दूध दुहने से पूर्व तथा बाद में एक प्रतिशत लाल दवा के घोल से थन साफ करना भी अच्छा रहता है।
▶ दुधारू पशुओं का दूध सूख जाने पर उनके थन में प्रतिजैविक उपचार करने पर अगले ब्यात तक थनैला की संभावना कम हो जाती है।
▶ दूध सही विधि से निकाला जाए। थन में घाव होने पर तुरंत उपचार करवाएं। थनैला रोग के लक्षण दिखाई देते ही तुरंत वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाएं अन्यथा थन खराब हो जाने से पशुपालक को आर्थिक हानि हो सकती है।
👉स्त्रोत:-Agrostar
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