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आखिर क्यों हो रहा इसका विरोध?
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आखिर क्यों हो रहा इसका विरोध?
🌿भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा करवाए प्लॉट स्तरीय परीक्षणों के बाद ये दावा किया गया है कि (जीएम) सरसों कई स्थानीय प्रजातियों से 30% तक अधिक उत्पादन दे सकती है. ऐसे में इसे भारत की पहली ट्रांसजेनिक खाद्य फसल कहा जा रहा है. 🌿जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने पिछले हफ्ते व्यावसायिक खेती के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही देश में इसका विरोध भी शुरू हो गया है. पर्यावरण से जुड़े संगठनों का कहना है कि जीएम सरसों में थर्ड ‘बार’ जीन की मौजूदगी है. इसके चलते इसके पौधों पर ग्लूफोसिनेट अमोनियम का असर नहीं होगा. वहीं, आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि जीएम सरसों की खेती में अगर केमिकल का उपयोग किया जाएगा तो खर-पतवार हटाने के लिए मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ेगी. ऐसे में गरीबों के सामने रोजगार का सकंट खड़ा हो जाएगा. 🌿क्या है जीएम फसल ? जीएम फसल वे होती हैं जो कि वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित करके तैयार की जाती हैं. सरसों की इस किस्म को लेकर दावा किया गया है कि इससे सरसों के उत्पादन में 30% तक वृद्धि होने की संभावना है. जीएम बीजों की फसल को पर्यावरण कि दृष्टि से भी बेहतर बताया जा रहा है. इस संबंध में जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी की 147वीं बैठक में सरसों की इस किस्म की सिफारिश को मंजूरी दी गई है. जीईएसी की सिफारिशों को सरकार की मंजूरी मिलने के बाद ही सरसों की इस किस्म को चालू रबी सीजन में उगाना संभव हो पाएगा. 🌿भारत में जीएम फसलों पर नीतिगत बहस क्यों :- भारत में जीएम फसलों पर नीतिगत बहस वर्षों से चल रही है. इससे पहले बीटी कपास हो या बीटी ब्रिंजल इन दोनों को लेकर भी बहसें हुई हैं. एक ओर जीएम बीजों की मदद से उत्पादन बढ़ाकर आयात पर निर्भरता कम करने की बात होती है, वहीं इसका व्यापक विरोध भी किया जाता रहा है. 🌿स्त्रोत:-Agrostar किसान भाइयों ये जानकारी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं और लाइक एवं शेयर करें धन्यवाद!
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